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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १७ सू० ११ मनुष्यादि सलेश्याल्पबहुत्वनिरूपणम् १३३ देवीणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला विसेसाहिया का?' हे भदन्त ! एतासां खलु देवीनां कृष्णलेश्यानां यावत नोलले श्यानां कापोतलेश्यानां तेजोलेश्यानाश्च मध्ये कतराः कतराभ्यो देवीभ्यः अल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका वा संभवन्ति, 'भगवानाह-गोयमा' ! हे गौतम ! सबथोवा देवीओ काउलेस्साओ' सर्वस्तोका देव्यः कापोतलेश्या भवन्ति, कतिपयानां भवनवासि वानव्यन्तरदेवीनां कापोतलेश्यायाः सद्भावात तेभ्यः 'नील. लेस्साओ विसेसाहियाओ' नीललेश्या देव्यो विशेषाधिका भवन्ति, प्रचुराणां भवनवासि व्यन्तरदेवीनां नीललेश्यायाः सद्भावात्, ताभ्योऽपि-'कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ' कृण्णलेश्यादेव्यो विशेषाधिका भवन्ति, प्रभूतानां भवनपति वानव्यन्तरदेवीनां कृष्णलेश्यायाः सभवात्, ताभ्योऽपि-'तेउलेस्साओ संखेजगुणाओ' तेजोलेश्यादेव्यः संख्येयगुणा भवन्ति, ज्योतिष्कसौधर्मेशानदेवी नामपि सर्वासां तेजोलेश्यायाः सद्भावात्, तथा च देवीनां सौध. अब लेश्या के आधार पर देवियों के अल्प बहुत्व का प्ररूपण किया जाता है गौतमस्वामी-भगवन् ! कृष्णलेश्या, नीललेल्या, कापोतलेश्या और तेजोलेश्या वाली देवियों में कौन किसकी अपेक्षा अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? भगवान्-हे गौतम कापोतलेश्यावाली देवियां सब से कम हैं, क्योंकि कतिपय भयनवासी एवं वानव्यन्तर देवियों में ही कापोतलेल्या होती है। नीललेश्यावाली देवियां उनसे विशेषाधिक हैं, क्यों कि बहुतसी भवनवासिनी और व्यन्तरी देवियों में नीललेश्या पाई जाती है। नीललेश्या वाली देवियों की अपेक्षा कृष्णलेश्यावाली देवियां विशेषाधिक है, क्यों कि बहुत-सी भयनपति-वानव्यन्तर देवियों में कृष्णलेश्या का सदुभाव होता है। कृष्णलेश्यायाली देवियों की अपेक्षा तेजोलेश्यावाली देचियां संख्यातगुनी ज्यादा हैं, क्यों कि तेजोलेश्या वाली देवियां संख्यातगुनी ज्यादा हैं, क्यों कि तेजोलेश्या सभी ज्योतिष्किदेवियों में तथा सौधर्म-ऐशानकल्प की देवियों હવે વેશ્યાના આધાર પર દેવીઓના અલ્પાબહત્વનું પ્રરૂપણ કરાય છે ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન!કૃણલેશ્યા, નલલેશ્યા, કપિલેશ્યા અને તેજલેશ્યાવાળી દેવિમાં કેણ કેની અપેક્ષાએ, અ૯પ, અધિક, તુલ્ય અથવા વિશેષાધિક છે? શ્રી ભગવાન–હે ગૌતમ! કાપતલેશ્યાવાળી દેવિ બધાથી ઓછી છે, કેટલીક ભવનવાસી તેમજ વ્યનત્યન્તર દેવિ તેમનાથી વિશેષાધિક છે, કેમકે ઘણી બધી ભવનવાસિની અને વન્તરી દેવામાં નીલેશ્યા મળી આવે છે. નીલલેશ્યાવાળી દેવિયેની અપેક્ષાએ કૃણલેશ્યાવાળી દેવિ વિશેષાધિક છે કેમકે, ઘણી ભવનપતિ વાનરાન્તર દેવિામાં કૃષ્ણલેશ્યાને સદૂભાવ હોય છે કૃષ્ણલેશ્યાવાળી દેવિયેની અપેક્ષાએ તેલશ્યાવાળીદવિ સંખ્યાતગણી વધારે છે, કેમકે તે લક્ષ્ય બધી જતિક દેવિામાં તથા સૌધર્મ, એશાન श्री. प्रशानसूत्र:४
SR No.006349
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages841
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size58 MB
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