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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १६ सू० ७ सिद्धक्षेत्रोपपातादिनिरूपणम् एवम् उत्तराद् दक्षिणम् उपरिष्टाद् अधः अधस्तादुपरि, सा एषा पुद्गलनोभवोपपातगतिः, तत् का सा सिद्धनोभवोपपातगतिः ? सिद्धनोभवोपपातगति द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-अनन्तरसिदनोभत्रोपपातगतिः, परम्परसिद्धनोभवोपपातगतिश्च, तत् का सा अनन्तरसिद्धनोभवोपपात गतिः ? अनन्तरसिद्धनोभवोपपातगतिः पश्चदशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-तीर्य सिद्धानन्तरसिद्धनोभवोपपातगतिश्च यावद् अनेकसिद्धनोभवोपपातगतिश्च, तत् का सा परम्परसिद्धनोभयोपपातपश्चिमी चरमान्त से (पुरथिमिल्लं चरमंतं) पूर्वी चरमान्त को (एगसमएणं गच्छति) एक समय में जाता है (दाहिणिल्लाओ वा चरमंताओ उत्तरिल्लं चरमंतं) अथवा दक्षिणी चरमान्त से उत्तरी चरमान्त को (एगसमएणं) एक समय में (गच्छति) जाता है (एवं उत्तरिल्लाओ दाहिणिल्लं) इसी प्रकार उत्तरी छोर से दक्षिणी छोरतक (उपरिल्लाओ हेडिल्लं) ऊपरी छोर से नीचले छोर तक (हिडिल्लाओ उचरिल्लं) नीचले छोर से ऊपरी छोर तक (से तं पोग्गलणोभयो वधायगती) यह पुद्गलनोभवोपपातगति है। _ (से किं तं सिद्धणोभवोववाथगती ) सिद्धनोभवोपपातगति कितने प्रकार की हैं ? (सिद्धणोभयोययायगती दुविहा पणत्ता) सिद्धनोभवोपपानगति दो प्रकार की कही है (तं जहा) यह इस प्रकार (अणंतरसिद्धणोभवोववायगती, परंपरसिद्ध णो भयोववायगती य) अनन्तर सिद्ध नो भोवोपपातगति और परम्परसिद्ध नो भयोपपातगति। (से किं तं अणंतरसिद्धणोभवोववायगती ?) अनन्तरसिद्धनो भवोपपात. गति कितने प्रकार की है ? (अणंतरसिद्धणोभयोववायगती पण्णरसविहा पण्णत्ता) अनन्तरसिद्ध नो भवोपपातगति पन्द्रह प्रकार की कही हैं (तं जहा) वह इस या चरमंताओ) अथवा पश्चिमी यभान्तथी (पुरथिमिल्लं चरमंतं) पुषी' यरमा-तभा (एगसमएणं गच्छति) मे समयमा नय छ (दाहिणिल्लाओ वा चरमान्ताओ उत्तरिल्लं चरमंतं) अथवा क्षणी य२मान्तथी उत्तरी २२मान्तमा (एगसमए) से समयमा (गच्छति) Mय छ (एवं उत्तरिल्लाओ दाहिणिल्लं) मे ५ त्तर त२३थी क्षण सुधा (उपरिल्लाओ हे दिल्लं) 3५२नी माथी नीयनी मामा (हि द्विल्लाओ उवरिल्लं) नीय॥ छ। यी ७५२ना सुधी (सेत पोग्गलणोभयोववायगती) मा पुगतनी २ मापातति छ (से कि तं सिद्धणोभवोववायगती ?) सिद्धनाम१५५तति । प्रा२नी छ ? (सिद्ध णो भवोववायगती दुविहा पण्णत्ता) सिनामवे ५५ातति मे ५२नी ४६ छ (तं जहा) ते मारे (अणंतरसिद्धगोभवोवनायगती, परंपर सिद्धणोभवोववायगती य) मनन्तर सिद्धता ભોપ પાતગતિ અને પરંપર સિદ્ધને પાતગતિ છે (से कि तं अणन्तर सिद्धगोभवोक्वायगती?) मनन्त२ सिद्धनालया५पातजति टा २नी छ ? (अगंतरसिद्धगोभयोववायगती पण्णरसविहा पण्णत्ता) मनन्तर सिना શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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