SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 926
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९१० प्रज्ञापनासत्रे गतिः ? परम्पर सिद्धनो नवोपयातगतिर ने कविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा अप्रथमसमयसिद्ध नो भवोपपातगतिः, एवं द्विसमपसिद्धनो भवोपपातगतिर्यावत्- अनन्तसमय सिद्ध नोभवोपपातगतिः, सा एषा सिद्ध नो भवोपपातगतिः, स एषा उपपातगतिः ४, तत् का सा विहायोगतिः ? विहायोगतिः सप्तदशविधा प्रज्ञप्ता तद्यथा - स्पृशद्गतिः १, अस्पृशद्गतिः २, उपसम्पद्यमान - गति: ३, अनुपसम्पद्यमानगति: ४, पुद्गलगति: ५, मण्डूकगतिः ६, नावागतिः ७, नयगतिः प्रकार (तित्थसिद्ध अणंतर सिद्धणो भयोयवायगती) तीर्थसिद्ध - अनन्तरसिद्ध नो भवोपपातगति (य) और (जाव) यावत् (अणेगसिद्धणो भवोयवायगती य) अनेकसिद्ध नोभवोपपातगती । (से किं तं परंपरसिद्धणो भवोववायगती ?) परम्परासिद्ध नो भवोपपातगति कितने प्रकार की है ? (परंपरसिद्ध नो भवोपपातगती अणेगविहा पण्णत्ता) परम्परसिद्ध नो भयोपपागति अनेक प्रकार की कही है (तं जहा ) यह इस प्रकार (अपदमसमयसिद्धो भयोववायगती) अप्रथम समयसिद्ध नो भवोपपातगती (एवं दुसमयसिद्ध णोभवोववायगती) इसी प्रकार दिसमयसिद्ध नो भवोपपातगती (जाच अनंतसमय सिद्धणो भवोववायगती) यावत् अनन्तरामयसिद्ध नो भवो पपातगति (से सं सिद्धणोभवशेववायगती) यह सिद्ध नो भवोपपातगति का प्ररूप हुआ (सेतं णो भवोचवायगती, से तं उववायगती) इस प्रकार नो भवोपपातगति का प्ररूपण और उपपातगति का प्ररूपण हुआ (से किं तं विहायगती ?) विहा योगति कितने प्रकार की है ? (विहायगती सत्तरसविहा पण्णत्ता) विहायोगति सत्तरह प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (फुसमाणगती) स्पर्श करती लवोपयातगति पंढर प्रहारनी छे (तं जहा) ते या प्रारे (तित्थसिद्ध अतरसिद्धणो भववव । यगती) तीर्थ सिद्ध-अनन्तर सिद्धनालापातगति (य) भने (जाव) यावत् (अगसिद्रोभववाय गती) ने सिद्धनालोपयातगति (से किं तं परंपरसिद्धणोभवोवायगती ? ) ५२ ५२रा सिद्धनावापयातगति डेटा प्रहारनी छे ? ( परंपरसिद्धनोभवोववायगती अणेगविहा पण्णत्ता ) ५२५२ सिद्धनालवोपपातगति मनेष्ठ प्रभारनी उही छे (तं जहा) ते या प्रारे ( अपढमसमयसिद्धणोमवोववायगती ) - प्रथम सिद्धनो लवोपयातगति ( एवं दु समय सिद्धणो भवोववायगती ) मे रीते द्वि समय सिद्धनोलवावायगति (जाव अनंत समयसिद्धणोभवोववायगती) यावत् अनन्त समय सिद्धनालवोपयातगति (सेतं सिद्धणोभवोववायगती) या सिद्धनालवोपयातगतिनुं प्र३या थ (सेत्तं णो भबोववायगती, सेतं उवत्रायगती) नोलवोपयत गतितुं प्रयाशु भने ઉપપાતગતિનુ... પ્રરૂપણ થયું. (से किं तं विहायगती १) विहायगति डेंटला अारनी छे ? (विहायर ती सत्तरस विहा पण्णत्ता विहायो गति सत्तर प्रभारनी उही छे तं जहा) ते मा प्रहारे (फुसमाणगती ) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy