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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० १० इन्द्रियादिनिरूपणम् उक्तरीत्यैव द्रव्येन्द्रियं बोध्यम्, किन्तु-वरं वद्धेल्लगा चत्तारि' नवरं-विशेषस्तु-बद्धानि द्रव्येन्द्रियाणि चत्वारि बोध्यानि ‘एवं चउरिदियम्स वि'-एवम्-उक्तरीत्या चतुरिन्द्रिस्यापि बोध्यं किन्तु ‘णवरं बद्धेल्लगा छ'-नवरं-विशेषस्तु बद्धानि षड् द्रव्येन्द्रियाणि बोध्यानि, 'पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा वाणमंतरा जोइसियसोहम्मीसाणगदेवस्स जहा असुरकुमारस्स'-पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिका मनुष्या वानव्यन्तरा ज्योतिष्कसौधर्मेशानकदेवस्य यथा असुरकुमारस्य वक्तव्यता उक्ता तथा वक्तव्या, किन्तु-'णवरं-विशेषस्तु मनुष्यस्य पुरस्कृतानि भावीनि द्रव्येन्द्रियाणि कस्यचित सन्ति, कस्यचित न सन्ति-'जस्सत्थि अट्र वा नव वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अणंता वा'-यस्य मनुष्यस्य भावोनि द्रव्येन्द्रियाणि भवन्ति तस्याष्टौ वा, नव वा, संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा, अनन्तानि वा, बोध्यानिपृथिव्याधे भवान्तरितमनुष्यस्य सिद्धिगामिनो नव द्रव्येन्द्रियाणि भवन्ति, 'सणंकुमारमाहिंदबंभलंतगसक्कसहस्सारआणयपाणयआरणअच्चुयगेवेजगदेवस्स य जहा नेरश्यस्स'सनत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तकशुक्रसहस्रारानतप्राणतारणाच्युतप्रैवेयकदेवस्य च यथा नैरउनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियां चार समझनी चाहिए । चौइद्रियों की वक्तव्यता भी इसी प्रकार की है, किन्तु उनकी बद्ध द्रव्येन्द्रियां छह होती हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यचों, मनुष्यों, वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों, सौधर्म तथा ईशान कल्प के देवों की द्रव्येन्द्रियां असुरकुमारों के समान कहनी चाहिए । परन्तु मनुष्य की आगामी द्रव्येन्द्रियों के विषय में विशेषता है। वह यह है कि किसी मनुष्य की आगामी द्रव्येन्द्रियां होती हैं और किसी की नहीं भी होती । जो उसी मनुष्यभव से सिद्ध हो जाते हैं, उनकी नहीं होती, शेष मनुष्यों की होती हैं। जिसकी होती हैं, आठ, नौ, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। जो मनुष्य बीच में एक भव एकेन्द्रिय का करके, मनुष्य होकर सिद्ध हो जाता है, उसकी तो आगामी द्रव्येन्द्रियां होती हैं। सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, જોઈએ. ચતુરિન્દ્રિયની વક્તવ્યતા પણ એ પ્રકારની જ છે, પણ તેમની બદ્ધ દ્રવ્યેન્દ્રિ छ डाय छे. પંચેન્દ્રિય વિર્ય, મનુષ્ય, વાનચતરો, તિષ્ક સૌધર્મ તથા ઈશાન કલ્પના દેવેની દ્રવ્યેન્દ્રિયે અસુરકુમારના સમાન કહેવી જોઈએ. પરંતુ મનુષ્યની આગામી દ્રવ્ય. ન્દ્રિયોના વિષયમાં વિશેષ છે. તે એ છે કે કોઈ મનુષ્યની આગામી દ્રવ્યેન્દ્રિયે હોય છે અને કેઈને નથી પણ હોૌં. જે એજ મનુષ્ય ભવથી સિદ્ધ થઈ જાય છે, તેમની નથી હોતી, શેષ મનુષ્યની હેય છે. જેની હોય છે, આઠ, નવ, સંખ્યાત, અસંખ્યાત અથવા તે અનન્ત હોય છે. જે મનુષ્ય વચમાં એક ભવ એકેન્દ્રિયને કરીને, મનુષ્ય થઈને સિદ્ધ થઈ જાય છે, તેની નવ આગામી દ્રવ્યેન્દ્રિયો હોય છે. सनमा२, माहेन्द्र, प्रमोx, aids, शु, सहसा२, मानत, प्रायत, मयुत तथा श्री प्रशानसूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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