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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पट १५ सू० १० इन्द्रियादिनिरूपणम् ७२७ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका मनुष्या वानव्यन्तराः, ज्योतिष्काः, सौधर्मेशानदेवस्य यथा असुर कुमारस्य, नवरं मनुष्यस्य पुरस्कृतानि कस्यचित् सन्ति कस्यचित् न सन्ति यस्य सन्ति, अष्टौ वा नववा संख्येयानि वा, असंख्येयानि वा अनन्तानि वा, सनत्कुमार माहेन्द्र ब्रह्मलोकलान्तकशुक्रसहस्रारानतप्राणतारणाच्युतग्रैवेयक देवस्य च यथा नैरथिकस्य, एकैकस्य खल भदन्त ! विजयवैजयन्तजयन्तापराजित देवस्य कियन्ति द्रव्येन्द्रियाणि अतीतानि ? गौतम ! यनी भी (णवरं बद्धलगा चत्तारि) विशेष - बद्र चार ( एवं चउरिदियस्स fa) इसी प्रकार चौइन्द्रिय की भी (णवर बद्वेल्लगा छ) विशेष बद्ध छह हैं ( पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा वाणमंतरा जोहसिय सोहम्मीमाणगदेवस्स) पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिकों, मनुष्यों वानव्यन्तरो ज्योतिष्कों, मौधर्म ईशान देवों की ( जहा असुरकुमारस्स) जसे असुरकुमार की (णवर) विशेष यह कि (मणूस पुरेक्खडा कस्सह अस्थि, कस्सह णत्थि ) मनुष्य की आगे होने वाली किसी की होती हैं, किसी की नहीं (जस्सत्थि अट्ट वा, नव वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अनंता वा) जिसकी होंगी, उसकी आठ, नौ, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगी (सर्णकुमार माहिदबंभलंतगसुक्क सहस्सार आणयपाणय आरणअच्चुयगेवेज्जगदेवस्स य जहा नेरइयस्स) सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, शुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयक देवकी इन्द्रियां जैसी नैरयिकों की । " (विजश्वेजयंत जयंत अपराजियदेवस्म केवइया दविदिया अतीता ?) विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित देवों की अतीत द्रव्येन्द्रियां कितनी ? इन्द्रियो छे ( एवं तेइंद्रियस्स वि) मेन प्रहारे त्रीन्द्रिय पशु (नवरं बधेललगा चत्तारि ) विशेष युद्ध थार (एवं चउरिदियल्स वि) मे अहारे यतुरिन्द्रियनी पशु (नवरं बल्लगा छ) विशेष यद्ध है। छे ( पंचिदियतिरिक्खजोणिया मणूसा वाणमंतरा जोइसिया सोहम्मीसाणगदेवरस ) पन्येन्द्रिय तिर्यश्यो नि।, मनुष्यो, वानव्यन्ती, ज्योतिष्ठा, सौधर्म इशान हेवोनी (जहा असुरकुमाररस) केवी असुरसुभारोनी (णवरं ) विशेष मे छे है (मणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अथ करइ णत्थि ) मनुष्यनी आागण थनारी अधने होय छे, होर्ड ने नथी होती (जस्सथि अड्डा, नववा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अणता वा) नेनी थशे तेनी आई, नव, સંખ્યાત, અસંખ્યાત અથવા અનન્ત थशे (सर्णकुमारमाहिं दबंभलंतगसुक्क सहस्सार आणय पाय आण अच्चुय गेवेज्जगदेवेरस य जहा नेरइयस्स) सनत्कुमार, भाडेन्द्र, ब्रह्मसोड, सान्त, शुर्डे, सहस्सार, खाणुत, आलुत, भारय, अभ्युत चैवेय, हेपनी इन्द्रियो देवी नैरयिडानी (विजय, वेजन्त जयन्त, अपराजिय, देवरस केवइया दव्वि दिया अतीता १) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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