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________________ प्रज्ञापनासत्रे कतिविधा खलु इन्द्रियनिर्वर्तना प्रज्ञप्ता, भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'पंचविहा निव्वतणा पण्णत्ता' पंचविधा निर्वर्तना प्रज्ञप्ता 'तं जहा सोइंदियनिव्वत्तणा जाय फासिंदियनिव्वतणा' -तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना, यावत्-चक्षुरिन्द्रियनिवर्तना, घ्राणेन्द्रियनिर्वर्तना, जियेन्द्रियनिर्वर्तना, स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना च, 'एवं मेरइयाणं जाव वेमाणियाण'-एवम्-उक्तरीत्या नैरयिकाणां यायद्-असुरकुमारादिभवनपति पृथिवीकायिकायेकेन्द्रियविकलेन्द्रियपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक मनुष्यवानगन्तरज्योतिष्कवैमानिकानामपि इन्द्रियनिर्वर्तना यथायोग्यं वक्तव्या, तदेवातिदिशन्नाह-'णवरं जस्स जइ इंदिया अस्थि । नवरम्-विशेषस्तु यस्य जीवस्य यायन्ति इन्द्रियाणि सन्ति तस्य तावती इन्द्रियनिर्वर्तना वक्तव्या इत्यर्थः, गौतमः पृच्छति-'सोइंदियणिव्यतणाणं भंते ! कइ समइया पण्णता ?' हे भदन्त ! श्रोत्रेन्द्रियनिर्वतना खलु कति समयका प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा " हे गौतम ! 'असंखिजइ समया अंतोमुहुत्तिया पण्णत्ता' द्वितीय द्वार-गौतमस्वामी-हे भगवन् ! इन्द्रिय निर्वर्तना अर्थात् इन्द्रियों की निष्पत्ति (रचना) कितने प्रकार की कही है ? भगवन-हे गौतम ! इन्द्रियनिर्वतना पांच प्रकार की कही है। वह इस प्रकारश्रोत्रेन्द्रियनियतना, चक्षुरिन्द्रिय निर्वतमा, घ्राणेन्द्रियनिर्वर्तना, जिहवेन्द्रियनिर्वर्तना और स्पर्शनेन्द्रियनिर्वर्तना । इसी प्रकार नारकों यावत्-असुरकुमार आदि भवनपतियो, पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों, पंचेन्द्रिय तिर्यंचों, मनुष्यों, वानव्यन्तरो, ज्योतिष्कों और चैमानिकों की इन्द्रियनिर्वतना भी समझलेनी चाहिए । इसका स्पष्टीकरण करते हैं-विशेषता यही है कि जिस जीव के जितनी इन्द्रियां होती हैं, उसकी इन्द्रियनिवर्त्तना उतने ही प्रकार की होती है। तृतीय द्वार गौतमस्वामी-हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियनिर्वर्तना कितने समय की कही गई है? ( દ્વિતીયકાર-શ્રી ગૌતમસ્વામી-હેભગવન ! ઈન્દ્રિય નિર્વના અર્થાત ઇન્દ્રિયની निपत्ति (२यन1) सा ४२नी ४ छ ? શ્રી ભગવાહે ગૌતમ ! ઈન્દ્રિય નિર્વના પાંચ પ્રકારની કહી છે. તે આ પ્રકારે છે–પ્રિન્દ્રિય નિર્વતના, ચક્ષુઇન્દ્રિય નિર્વતના, ધ્રાણેન્દ્રિય નિર્વતના, જિહુવેન્દ્રિય નિર્વતેના સ્પર્શનેન્દ્રિય નિર્વતના (રચના). એ પ્રકારે નારકે યાવત્ અસુરકુમાર આદિ ભવન પતિ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચે, મનુષ્ય, વનવ્યન્તરે, જ્યોતિષ્ક તથા વૈમાનિકેની ઈન્દ્રિય નિર્વતના પણ સમજી લેવી જોઈએ. તેનું સ્પષ્ટીકરણ કરે છે–વિશેષતા એ છે કે જે જીવની જેટલી ઇન્દ્રિયો હોય છે, તેમની ઈન્દ્રિય નિર્વતના (રચના) એટલા જ પ્રકારની હોય છે. तृतीय द्वार શ્રી ગૌતમસ્વામી-હે ભગવન્ ? એન્દ્રિય નિર્વતના કેટલા સમયની કહેલી છે? श्री प्रापन। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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