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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० ८ इन्द्रियोपचयनिरूपणम् ६९५ न्द्रियोपचयः, स्पर्शनेन्द्रियोपवयः, 'एवं जाव वैमाणियाण' एवम् नैरयिकाणामिव यावत् - अपुरकुमारादिभवनपति पृथिवीकायिकाद्ये केन्द्रिय विकलेन्द्रिय पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक मनुष्य वानव्यन्तरज्योतिष्क वैमानिकानामपि यथायोग्यमिन्द्रयोपचयोऽवसेयः, तदेवातिदेशेनाह - 'जस्स जई दिया तस्स तविहो चेव इंदिओवचयो भाणियन्त्रो ?' यस्य जीवस्य यावन्ति इन्द्रियाणि भवन्ति, तस्य तावद्विश्चैव इन्द्रियोपचयो भणितव्यः, तत्र नैरयिकादिस्तनित कुमारपर्यन्तानां पश्चप्रकारः, पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायिकानामेकप्रकारो द्वीन्द्रियाणां द्विप्रकारः, त्रीन्द्रिatri त्रिप्रकार तुरिन्द्रियाणां चतुष्प्रकारः, पञ्चेन्द्रियतिग्योनिकमनुष्यवानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकानां पञ्चप्रकारः, इन्द्रियोपचयः प्रज्ञप्तः स्वर्शनरसनघ्राणचक्षुः श्रोत्राणामुपचय इत्यर्थः फलितः । द्वितीयं द्वारं-गौतमः पृच्छति - ' कइ विहाणं भंते! इंदियनिव्वत्तणा पण्णत्ता ? हे भदन्त ! न्द्रियोपचय, जिवेन्द्रियोपचय और स्पर्शनेन्द्रियोपचय । नैरयिकों के समान ही असुरकुमार आदि भवनपतियों, पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रियों, विकलेन्द्रियों, तिर्यच पंचेन्द्रियों, मनुष्यों, वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों का भी इन्द्रियोपचय यथायोग्य समझ लेना चाहिए । इसी का स्पष्टीकरण किया गया है - जिस जीव के जितनी इन्द्रियां होती हैं, उसका इन्द्रियोपचय भी उतने ही प्रकार का होता है । इस कथन के अनुसार नारकों से लेकर स्तनितकुमारों तक के जीवों का इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का है, पृथ्वीकायिकों, अष्कायिकों, तेजस्कायिकों, वायुकायिकों और वनस्पतिकायिकों का एक प्रकार का, दीन्द्रियों का दो प्रकार का, त्रीन्द्रियाँ का तीन प्रकार का, चतुरिन्द्रिय जीवों का चार प्रकार का, पंचेन्द्रिय तिर्यचों, मनुष्यों, वानव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों का इन्द्रियोपचय पांच प्रकार का कहा गया है, अर्थात् स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु और श्रोत्रेन्द्रिय का उपचय । અને સ્પર્શીનેન્દ્રિયાપચય, નૈરિયકોના સમાન જ અસુરકુમારાદિ ભવનપતિÀા, પૃથ્વીાયિકા आहि येडेन्द्रियो, विद्वेवेन्द्रियो तिर्यग्य यथेन्द्रियो, मनुष्यो, पानव्यन्तरौ, ज्योतिष्ये। અને વૈમાનિકાના પણ ઈન્દ્રિયાપચય યથા યોગ્ય સમજી લેવા જોઇએ. તેનું સ્પષ્ટીકરણ કરેલ છે-જે જીવની જેટલી ઈન્દ્રિયો હેાય છે, તેમના ઇન્દ્રિયાપચય પણ તેટલા જ પ્રકારના હોય છે. એ કથનાનુસાર નારકાથી લઈને સ્વનિતકુમારા સુધીના જીવાના ઇન્દ્રિયાપચય पांच प्रहारनो छे, पृथ्वी आयो, सच्छायिओ, तेन्ससायि, वायुमयिो, अने वनस्पति કાયિકાના એક પ્રકારના, દ્વીન્દ્રિયાના એ પ્રકારના, ત્રીન્દ્રિયાના ત્રણ પ્રકારના, ચતુરિદ્રિયાના यार प्रहारना, यथेन्द्रियना यांन्य प्रहारना, तिर्यथा, मनुष्यो पानव्यन्तरौरी, ज्योतिषा અને વૈમાનિકાના ઇન્દ્રિયેાપચય પાંચ પ્રકારના કહેલા છે, અર્થાત્ સ્પન, રસન, પ્રાણ અને શ્રાત્રેન્દ્રિયના ઉપય. श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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