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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १५ सू० ८ अतीन्द्रियविशेषविषयनिरूपणम् ६६७ क्षेत्रम् आगाह्य खलु तिष्ठति ? हन्त गौतम ! स्थूणा खलु ऊर्ध्वमुच्छ्रिता तच्चैव तिष्ठति, आकाशथिग्गलः खलु भदन्त ! केन स्पृष्टः कतिभिर्वा कायैः स्पृष्टः ? किं धर्मास्तिकायेन स्पृष्टः, धर्मास्तिकायस्य देशेन स्पृष्टः, धर्मास्तिकायस्य प्रदेशैः स्पृष्टः १ एवम् अधर्मास्तिकायेन, आकाशास्तिकायेन, एतेन भेदेन यावत् पृथिवीकायिकेन स्पृष्टः, यात् त्रसकायिकेन अद्धासमयेन स्पृष्टः ? गौतम ! धर्मास्तिकायेन स्पृष्टः, नो धर्मास्तिकायस्य देशेन स्पृष्टः, खेत्तं ओगाहहत्ताणं) जितने क्षेत्र को अवगाहन करके (चिटइ) रहती है (तिरियं पि य णं आयता समाणी) तिर्शी लम्बी की हुई भी (तावइयं चेव खेत) उसने ही क्षेत्र को (ओगाहइत्ताणं चिट्ठइ) अवगाहन करके रहती है (हंता गोयमा !) हां, गौतम ! (थूणाणं उड्ढं असिया तं चेव) स्थूणा ऊंची उठी हुई, इत्यादि वही (चिट्ठति) रहती है। __ (आगासथिग्गले णं भंते !) हे भगवन् ! आकाशरूप थिग्गल अर्थात् लोक (किणा फुडे) किससे स्पृष्ट है ? (कहहिं वा काएहि फुडे ?) कितने कायों से स्पृष्ट है ? (किं धम्मस्थिकारणं फुडे) क्या धर्मास्तिकाय सेस्पृष्ट है ? (धम्मस्थिकायस्स देसेणं फुडे) धर्मास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है ? (धम्मस्थिकायस्स पएसेहिं फुडे) धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है ? (एवं अधम्मस्थिकाएणं) इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय से (आगासस्थिकारणं) आकाशास्तिकाय से (एएणं भेदेणं) इस भेद से (जाव पुढविकाएणं) यावत् पृथ्वीकाय से स्पष्ट है (जाव तसकाए णं) यावत् प्रसकाय से (अद्धा समएणं) काल से (फुडे) स्पृष्ट है ? (गोयमा! धम्मस्थिकारणं फुडे) हे गौतम ! धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है (नो धम्मस्थिकायस्स देसेणं फुडे) भान ४शन (चिदृइ) २९ छ (तिरिय पि य णं आयता समाणी) ति पानी न ५ (तावइयं चेव खेत्तं) ते क्षेत्रने (ओगाहित्तार्ण चिटइ) साना शन रहेछ ? (हंता गोयमा !) i, गौतम ! (थूणाणं उड्ढं असिया तं चेव) स्थू। यी seी, त्यात ते (चिटुंति) २३ छ (आगोसथिग्गलेणं भंते !) गवन् ! ।। ३५ थिस अर्थात् as (किंणा फुडे) शनायी २५ष्ट छ ? अर्थात् २५यर छ ? (कइहिं वा काएहिं वा फुडे १) ४ी याथी स्पष्ट छ ? (किं धम्मत्थिकारण फुडे) शु पायथी स्पृष्ट छ, (धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे) धास्तियन थी स्पृष्ट छ ? (धम्मत्थिकायस्स पएसेहि फुडे) घास्तियन प्रशायी स्पृष्ट छ १ (एवं अधम्मत्थिकाएणं) ये प्रमाणे सास्त यथी (आगासत्थिकाए ण) मा॥२1स्तिथी (एएणं भेदेणं) मा मेथी (जाव पुढविकाएणं फुडे) यावत् पृथ्वीयथी स्पृष्ट छ (जाव तसकारण) यावत् सयथी (अद्धा समएणं) थी (फुडे) -पृष्ट छे (गोयमा! धम्मत्थिकारणं फुडे) गौतम! धास्त थी २१ष्ट छ (नो धम्नत्थिकायस्स देसेणं फुडे) घास्तियना BAथी स्पृष्ट नथी. (धम्मत्थिकायम्स पएसेहिं फुडे) मास्तियन प्रदेशमा प्रष्ट छ श्री. प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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