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प्रकापनासूत्रे धर्मास्तिकायस्य प्रदेशैः स्पृष्टः, एवम् अधर्मास्तिकायेनापि, नो आकाशास्तिकायेन स्पृष्टः, आकाशास्तिकायस्य देशेन स्पृष्टः, आकाशास्तिकायस्य प्रदेश विद् वनस्पतिकायिकेन स्पृष्टः, त्रसकायिकेन स्यात् स्पृष्टः, अद्धासमयेन देशः स्पृष्टः, देशो न स्पृष्टः, जम्बूद्वीप: खलु भदन्त ! द्वीपः केन स्पृष्टः, कतिभिर्वा कायै स्पृष्टः ? किं धर्मास्तिकायेन यावद आकाशास्तिकायेन स्पृष्टः ? गौतम ! नो धर्मास्तिकायेन स्पृष्टः, धर्मास्तिकायस्य देशेन स्पृष्टः, धर्मास्तिकायस्य प्रदेशैः स्पृष्टः, एवम् अधर्मास्तिकायस्यापि; आकाशास्तिकायस्यापि, धर्मास्तिकाय के देश से स्पृष्ट नहीं है (धम्मस्थिकायस्स पएसेहिं फुडे) धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है (एवं अधम्मत्थिकारणवि) इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय से भी (नो आगासस्थिकारणं फुडे) आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं है (आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे) आकाशास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है (आगासस्थिकायस्स पएसेहिं) आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से (जाव) यावतू (वणस्सइ काएणं फुडे) वनस्पतिकाय से स्पृष्ट है (तसकाएणं सिय फुडे) त्रसकाय से कथं. चितू स्पृष्ट है (अद्धासमएणं देसे फुडे, देसे णो फुडे) कालद्रव्य से देश में स्पृष्ट है, देश में स्पृष्ट नहीं है ___(जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप (किंणा फुडे ?) किससे स्पृष्ट है ? (कइहिं वा काएहिं फुडे) कितने कायों से स्पृष्ट है ? (किं धम्मस्थिकाएणं जाव आगासत्थि काएणं फुडे ?) क्या धर्मास्तिकाय से यावत् आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है ? (गोयमा ! णो धम्मस्थिकाएणं फुडे) हे गौतम ! धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं (धम्मत्थिकायस्स देसेणं फुडे) धर्मास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है (धम्मत्थिकायस्स पएसेहिं फुडे) धर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है (एवं अधम्मस्थिकायस्स वि) इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के भी (एवं अधम्मत्थिकारण वि) से प्रारे अधर्मास्तियथी ५१ (नो आगासत्थिकारणं फुडे) मास्तियश्री स्पृष्ट नथी (आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे) 243यन हेशथी स्पष्ट छ (आगासस्थिकायस्स परसेहि) शास्तियन प्रशिया (जाव) यावत् (वणस्सइकाएणं फुडे) वनस्पतियथी २ष्ट छ (तसकाएणं सिय फुडे) स यथी ४थयित स्पृष्ट छ (अद्धा. समएणं देसे फुडे -देसे णो फुडे) ४ia द्रव्यथा हेमi kष्ट छ, देशमा स्पृष्ट नथी
(जंबु हीवेणं भंते ! दीवे) भगवन् ! ५५ नाम४ बी५ (किंणा फुडे) नाथी स्पृष्ट छ १ (कइहिं वा काएहि फुडे) स! याथी २५ष्ट छ १ (कि धम्मत्थिकाएणं जाव आगासस्थिकारणं फुडे १) शु पस्तिथी यावत् 24taaruथी स्पृष्ट छ ? (गोयमा ! णो धम्मत्थिकारणं फुडे) : गौतम ! धर्मास्तिथी २ष्ट नथी (धम्मत्थि कायस्स देसेणं फुडे) धास्त हेराथी स्पृष्ट छे (धम्मत्थिकायस्स पएसेहिं फुडे) धास्तियना प्रदेशयी स्पृष्ट छ (एवं अधम्मत्थिायस्स वि) मे रे अस्तियन ५५] (अगा.
श्री प्रपनासूत्र : 3