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प्रमेयबोधिनी टीका पद १५ सू० ४ स्पृष्टद्धारनिरूपणम् अस्पृष्टानि रूपाणि पश्यति ? गौतम ! नो स्पृष्टानि रूपाणि पश्यति, अस्पृष्टानि रूपाणि पश्यति, स्पृष्टान भदन्त ! गन्धान आजिघ्रति, अस्पृष्टान् गन्धान आजिघ्रति ? गौतम ! स्पृष्टान् गन्धान आजिघ्रति, नो अस्पृष्टान् गन्धान आजिघ्रति, एवम्-रसानपि स्पर्शानपि, नवरम्-रसान् आस्वादयति, स्पर्शान् प्रतिसंवेदयते इति अभिलापः कर्तव्यः, प्रविष्टान् भदन्त ! शब्दान् शृणोति, अप्रविष्टान् शब्दान् शृणोति ? गौतम ! प्रविष्टान् शब्दान पुट्ठाई सदाई सुणेइ, नो अपुट्ठाई सुदाई सुणेइ) हे गौतम ! स्पृष्ट शब्दों को सुनती है, अस्पृष्ट शब्दों को नहीं सुनती। __ (पुट्ठाई भते! रूवाइं पासइ, अपुटाई पासइ ?) हे भगवन् ! चक्षु स्पृष्ट रूपों को देखती है या अस्पृष्ट रूपों को देखती है (गोयमा ! नो पुट्ठाई रुवाइं पासह, अपुठ्ठाई रुवाई पासइ) हे गौतम! स्पृष्ट रूपों को नहीं देखती है, अस्पृष्ट रूपों को देखती है (पुट्ठाई भते गंधाई अग्धाइ, अपुटाई गंधाई अग्घाइ ?) हे भगवन् ! घाण स्पृष्ट गंधों को सू घती है या अस्पृष्ट गंधों को सूंघती है ? (गोयमा! पुट्ठाई गंधाई अग्घाइ, नो अपुट्ठाई गंधाई अग्घाइ) हे गौतम ! स्पृष्ट गंध को सूंघती है, अस्पृष्ट गंध को नहीं सूंघती (एवं रसाण वि फासाण वि) इसी प्रकार रसों और स्पर्शो को भी (णवरं) विशेष (रसाई अस्साएइ, फासाई पडिसंवेदेइ त्ति अभिलावो काययो) रसों का आस्वादन करती है और स्पों का प्रतिसंवेदन करती है, ऐसा अभिलाप करना चाहिए।
(पविट्ठाई भंते ! सदाई सुणेइ, अपविट्ठाई सदाई सुणेइ ?) हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय प्रविष्ठ शब्दों को सुनती है या अप्रविष्ठ शब्दों को सुनती है ? न्द्रिय २५४ होने सामने छ ५१२ अरष्ट होने सामणे छे' (गोयमा ! पुदाई सदाई, सुणेइ नो अपुढाई सहाइं सुणेइ) 3 गौतम! स्पृष्ट शहाने सालणे छे. मष्ट शण्होने नया समिती (पुदाई भंते ! रूबाई पासइ, अपुढाई रूवाइं पासइ ?) ३ मावन् ! यक्षु स्पष्ट पाने नवे छ २२ मष्ट ३याने नवे छ (गोयमा ! नो पुट्ठाई रूवाई पासइ, अपुढाई रूवाई पासइ) 3 गौतम ! २Yष्ट ३पान नथी ?मती, मष्ट ३पोन नवे छ ।
(पुढाई भंते ! गंधाइं अग्घाइ, अपुट्ठाई गंधाई अग्घाइ १) भगवन् ! प्र ष्ट पान सुधे छ २ अरष्ट गाने सुध छ ? (गोयमा ! पुट्ठाई गंधाई अग्याइ. नो अपुदाई गंधाइं अघाइ) 3 गौतम ! स्पृष्ट मध सुध छ, अरष्ट गधने नथी सुधती (एवं रसाण वि, फासाण वि) मे४ ४ारे २३। मने २५नि ५९५ (नवर) विशेष (रसाइं अस्सा. एइ, फासाई पडिसंवेदइत्ति अभिलावो कायक्वो) २सोनु मास्वाइन ४२ थे, अने २५नु પ્રતિસંવેદન કરે છે, એ અભિલાપ કહેવું જોઈએ.
(पविट्ठाई भंते ! सहाइं सुणेड, अपविट्ठाई सहाई सुगेइ ?) 3 मावन् ! भन्द्रिय प्रविष्ट होने सालणे छे मा२ अप्रविष्ट Awaa सोमणे छ १ (गोयमा! पविद्वाइं सड़ाई सुणेइ,
श्री प्रशान॥ सूत्र : 3