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प्रमेयचोधिनी टीका पद १४ सू० २ क्रोधप्रकारविशेषनिरूपणम् एवं नैरयिकाः यावद् वैमानिकाः, एवम् उपचेष्यन्ति, जीवाः खलु भदन्त ! कतिभिः स्थानै रष्टौ कर्मप्रकृती: अभान्त्सुः ? गौतम ? चतुर्भिः स्थानेरष्टकर्मप्रकृतीः अभान्त्सुः, तद्यथा-क्रोधेन मानेन यावद् लोभेन, एवं नैरयिका यावद् वैमानिकाः अभान्त्सुः, बघ्नन्ति, भन्स्यन्ति, उदैयन् उदीरयन्ति, उदीरयिष्यन्ति, अवेदयन्त ! वेदयन्ते, वेदयिष्यन्ते, निर. जारयन, निर्जारयन्ति, निर्जारयिष्यन्ति, एवमे ते जीवादिकाः वैमानिकपर्यवसानाः अष्टादश दण्डकाः यावद् वैमानिकाः, निरजारयन्, निर्जारयन्ति, निर्जारयिष्यन्ति, आत्मप्रतिष्ठित क्षेत्रं प्रतीत्यानन्तानुबन्धी आभोगः । चयोपवयबन्धोदीरणवेदना तथा निर्जरा चैव ॥१॥ इति प्रज्ञापनायां भगवत्यां कषायपदं समाप्तम् ॥ १४ ॥ सू०२ ॥ चउहिं ठाणेहिं उवचिणति) चार कारणों से उपचय करते हैं (जाव लोभेणं) यावत् लोभ से (एवं नेरइया जाव वेमाणिया) इसी प्रकार नारक यावत् वैमानिक (एवं उवचिणिस्संति) इसी प्रकार उपचय करेंगे
(जीवाणं भंते ! कतिहि ठाणेहिं अढकम्मपगडीओ बंधिसु?) हे भगवन ! जीयों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों को बांधा ? (गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं अट्टकम्मपगडीओ बंधिसु) हे गौतम ! चार कारणों से आठ कर्मप्रकतियों को बाँधा (तं जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से (एवं नेरइया जाव येमाणिया) इसी प्रकार नारक यावत् वैमानिक (बंधिंसु) बांधा (बंधंति) बांधते हैं (बंधिस्संति) बांधेगे (उदीरेंसु) उदी. रणा की (उदीरंति) उदीरणा करते हैं (उदीरिस्संति) उदीरणा करेंगे (वेदिसु) वेदन किया (वेदेति) वेदने हैं (वेदइस्संति) वेदेंगे (निजरिंसु) निर्जरा की (निजरेति) निर्जरा करते हैं (निजरिस्संति) निर्जरा करेंगे (एवं) इस प्रकार (एते) ये (जीवाइया) जीव से आरंभ करके (वेमाणियपजवसाणा) वैमानिकों तक पंति) या२ ॥२९४थी ७५यय रे छे (जाव लोभेणं) यावत् से लथी (एवं जाव नेरइया जाव वेमाणिया) मे रे ना२४ यावत वैमानि (एवं उवचिणिस्संति) मे ४२ रुपयय ४२शे
(जीवाणं भंते ! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ बंधिसु?) हे भगवन्! वारसा रियोथी मा ४ प्रतिमा मांधी ? (गोयमा! चउहि ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ बंधिसु) है गौतम ! या२ रणे।था -18 ४ प्रतियाने मांधा (तं जहा कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) ओपथी, भानथी, भायाथी, सोमयी (एवं नेरइया जाव बेमाणिया) मे४ प्र४२ ना२५ यापत वैमानि (बंधि सु) मांध्या (बंधति) मधे छ (बंघिस्संति) Mid (उदीरें सु) S२६॥ अश (उदीरंती) ही२५॥ ४२ छ (उदिरीरसंति) Sl२६॥ ७२२ (वेदिसुं) पेहन यु (वेदेति) वहन ७२ छ. (वेदइसति) वेहन ४२N (निजरिंसु) नि२॥ ४२॥ (निज्जरेति) नि२०७३ छ (निज्जरिस्संति) नि। २ (एवं) से प्रारे (एते) मा (जीवाइया) 4थी २३मात शन (वेमाणियपज्जवसाणा) वैमानि। सुधा (अट्ठारसदंडगा) मा२ ६७ (जाव वेमाणिया) मानि।
श्री प्रशान॥ सूत्र : 3