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________________ प्रज्ञापनामुत्रे तद्यथा-क्रोधेन मानेन मायया लोभेन, एवं नैरयिका यावद् वैमानिकाः. जीवाः खलु भदन्त ! कसिभिः स्थानरष्टकर्मप्रकृतीश्चेष्यन्ति ? गौतम ! चतुर्भिः स्थानैरष्टौ कर्मप्रकृतीश्चेष्यन्ति, तद्यथा-क्रोधेन, मानेन, मायया, लोभेन, एवं नैरयिका यावद् वैमानिकाः, जीवा, खलु भदन्त ! कतिभिः स्थानै रष्टौ कर्मप्रकृतीरुपचितवन्तः ? गौतम ! चतुर्भिः स्थानै रष्टौ कर्म प्रकृतीरुपचितवन्तः, ? तद्यथा-क्रोधेन, मानेन, मायया, लोभेन, एवं नैरयिका यावद् पैमानिकाः, जीयाः खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! चतुभिः स्थानरुपचिन्वन्ति, यावल्लोभेन, जीवा णं भंते ! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मपडीओ चिणिस्संति?) हे भगयन् ! जीप कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करेंगे? (गोयमा ! चउहिं ठाणेहि अट्रकम्मपगडीओ चिणिस्संति) हे गौतम ! चार कारणों से आठ कर्म प्रकृतियों का चय करेंगे (तं जहा) ये इस प्रकार (कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से (एथं नेरइया जाय वेमाणिया) इसी प्रकार नारक यायम् वैमानिक - (जीया णं भंते ! कतिहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मगडीओ उवचिणिंसु) हे भगवन् ! जीवों ने कितने कारणों से अष्ट कर्मप्रकृतियों का उपचय किया है ? (गोयमा! चाहिं ठाणेहि अट्ठकम्मपगडीओ उपचिणिंसु) हे गौतम! चार कारणों से अष्ट कर्मप्रकृतियों का उपचय किया है (तं जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोमेणं) ये इस प्रकार-क्रोध से, मान से, माया से और लोभ से (एवं नेरइया जाय येमाणिया) इसी प्रकार नारक यावत् वैमानिक (जीवाणं) जीवों के विषय में(भंते!) हे भगवन् ! (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा ! भायायी सामयी (एवं नेरइया जाव वेमाणिया) से ॥२ ॥२४ यावत् वैमानि ५यत सम से. (जीवाणं भंते ! कहहिं ठाणेहिं अट्टकम्मपगडीओ चिणिस्संति ?) 3 मापन ! ७५ सा शरणाथी मा म प्रतियोना यय ४२री ? (गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं अटुकम्म पगडीमो विणिस्संति) है गोतम ! या२ रणथी २। प्रतियाना यय ४२शे (तं जहा) ते मा ४२ (कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) डोपथी, भानथी, मायाथी, सोयी (एवं नेरइया जाव वेमाणिया) से प्रा३ ना२४ यावत् वैमानि४ ५यत समय से (जीवाणं भंते काहिं ठाणेहिं अट्टकम्मपगडीओ उवचिणिंसु) लावन् ! वो रखा आशाथी भाट प्रतियोन। ५-यय ४३६ छ ? (गोयमा ! चाहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिसु) हे गौतम ! यार ४ारणेथी मष्ट ४ प्रतियाना उपयय ४२ छ (जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) ते मा ४॥२-धथी, भानथी, मायाथी, सोमयी (एवं नेरड्या जाव वेमाणिया) मे४ ५४३ ११२४ ११त् वैमानित (जीवाणं) ७५ (भंते !) हे भगवन् ! (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा ! चउहि ठाणेहिं उवधि श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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