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________________ प्रबोधिनी टीका पद ८ सू. १ संज्ञापदनिरूपणम् कारणं पडुच्च मेहुणसन्नोवउत्ता, संततिभावं पडुच्च आहारसन्नोवउत्ता वि, जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता वि, एएसि णं भंते! मणुस्साणं आहारसन्नोवउत्ताणं जाव परिग्गहसन्नोवउत्ताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा मणूसा भयसन्नोवउत्ता, आहारसन्नोवउत्ता संखिजगुणा, परिग्गहसन्नोवउत्ता संखिजगुणा, मेहुणसन्नोवउत्ता संखिजगुणा, देवाणं भंते! किं आहारसन्नोव उत्ता जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता ? गोयमा ! ओसन्नं कारणं पडुच्च परिग्गहसन्नोव उत्ता संततिभावं पहुच्च आहारसन्नोवउत्ता वि जाव परिग्गहसन्नोवउत्ता वि, एएसि णं भंते! देवाणं आहारसन्नोव - उत्ताण जाव परिग्गहसन्नोवउत्ताण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा ! सव्वत्थोवा देवा आहारसन्नोव उत्ता, भयसन्नोवउत्ता संखिजगुणा, मेहुणसन्नोवउत्ता संखिज्ज - गुणा, परिग्गहसन्नोव उत्ता संखिजगुणा || सू० १ || इई पण्णवणाए भगवईए अट्टमं सन्नापयं समत्तं ॥ छाया - कति खलु भदन्त ! संज्ञाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! दश संज्ञाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाआहारसंज्ञा १, भयसंज्ञा ३, मैथुनसंज्ञा ३, परिग्रहसंज्ञा ४, क्रोधसंज्ञा ५, मानसंज्ञा ३, माया संज्ञा ७, लोभसंज्ञा ८, लोकसंज्ञा ९, ओघसंज्ञा १०, नैरयिकाणां भदन्त ! कति संज्ञाः आठवां संज्ञापद शब्दार्थ - ( कइ णं भंते ! सन्नाओ पण्णत्ताओ ?) हे भगवन् ! कितनी संज्ञाएं कही है ? (गोयमा ! दस सन्नाओ पण्णत्ताओ) हे गौतम । दश संज्ञाएं कही गई है (तं जहा) वे इस प्रकार ( आहारसन्ना) आहारसंज्ञा (भयसन्ना) भयसंज्ञा (मेहुणसन्ना) मैथुन संज्ञा (परिग्गहसन्ना) परिग्रहसंज्ञा (कोहसन्ना) क्रोधसंज्ञा (माणसन्ना) मानसंज्ञा (लोहसन्ना) लोभसंज्ञा (लोयसन्ना) लोकसंज्ञा (ओघઆઠમું સંજ્ઞા પદ્મ शब्दार्थ - (कइणं भंते ! सन्नाओ पण्णत्ताओ ?) हे भगवन् ! डेंटली संज्ञाओ उडी छे ? (गोयमा ! दस सन्नाओ पण्णत्ताओ) हे गौतम! हश संज्ञाओो अडी छे (तं जहा ) तेथे या रीते (आहारसन्ना) आहार संज्ञा ( भयसन्ना) लय संज्ञा (मेहुणसन्ना) मैथुन संज्ञा (परिग्गहसन्ना) परिग्रह संज्ञा (कोहसन्ना) डोध संज्ञा (माणसन्ना) भानसंज्ञा प्र० ५ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩ ३३
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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