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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १२ सू० ५ पृथिवीकायिकादीनामौदारिकशरीरनिरूपणम् ४६३ खलु असंख्येयानि, असंख्येयाभिरुत्सर्पिण्यवसर्पिणीभि रपहियन्ते कालतः, क्षेत्रतोऽसंख्येया लोकाः, तत्र खलु यानि तावद मुक्तानि तानि खलु अनन्तानि, अनन्तामि रुत्सपिण्यवसर्पिणीभि रपहियन्ते कालतः, क्षेत्रतोऽसंख्येया लोकाः, अभवसिद्धिकेभ्योऽनन्तगुणाः, सिद्धानामनन्तभागः, पृथिवीकायिकानां भदन्त ! कियन्ति वैक्रियशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-बद्धानि च मुक्तानि च, त्रत खलु यानि तावद् बद्धानि तानि खलु न सन्ति, तत्र खलु यानि तावद् मुक्तानि तानि खलु यथा एतेषाञ्चैव औदारिकाणि तथैव भणितव्यानि, एवम् आहारकशरीराण्यपि तैजसकार्मणानि यथा एतेषाञ्चैव णीहिं अवहीरंति कालओ) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, काल की अपेक्षा (खेत्ती असंखेजा लोगा) क्षेत्र से असंख्यात लोक प्रमाण (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा) उनमें जो मुक्त हैं (ते णं अणंता) वे अनन्त हैं (अणताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति) अनन्त उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं (कालओ) काल की अपेक्षा से (खेत्तओ अणंता लोगा) क्षेत्र से अनन्त लोक प्रमाण हैं (अभवसिद्धिएहितो अणंतगुणा) अभव्यों से अनन्त गुणा है (सिद्धाणं अणंतभागो) सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं __ (पुढयिकाइयाणं भंते ! केवइया वेचियसरीरगा?) हे भगवन् ! पृथ्वीकाइकों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? (गोयमा! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य) वे इस प्रकार बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा) उनमें जो बद्ध हैं (ते णं णत्थि) वे नहीं हैं (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा) उनमें जो मुक्त हैं (ते णं जहा एएसिं चेच ओरालिया तहेव भाणियव्या) उन्हें इन्हीं के औदारिक शरीरों के समान कहना चाहिए (एवं आहारगसरीरा कालओ) असण्यात उत्सपियो भने असमियोथी अपात थाय छ, सनी अपेक्षाय (खेत्तओ असंखेज्जा लोगो) क्षेत्रथी मसच्यात प्रभार (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा) तगाभा २ भुत छ (ते णं अणंता) तेथे मनन्त छ (अणंताहिं उम्सप्पिणि-आसप्पिणीहिं अवहीरंति) मनन्त Grafणयो-मक्स योथी २५पाहत थाय छ (कालओ) आनी मपेक्षा (खेतओ अणंता लोगा) क्षेत्रथी मन-dals प्रभार (अभवसिद्धिएहिं तो अणंतगुणा) मलयोथी मनन्त छ (सिद्धाणं अणंतभागो) सिद्धीना सन-तभी मा छ (पुढविकाइयाणं भंते ! केवइया वेउब्वियसरीरगा ?) 3 सावन् ! पृथ्वीयजीना वैठिय शरीर मा छे ? (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) ३ गौतम ! मे ५४२ना छ (तं जहा बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य) तेसो मा ४१२ मा भने भुत (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा) तमाम रेमो मद्ध छ, (ते णं नत्थि) तेमा नथी (तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा) तमाम रे भुत छ. (ते णं जहा एएस चेव ओरालिया तहेव भाणि. यव्वा) तेमाने समान २१ मोहा२ि४ शरीराना ४थन प्रमाणे सम ा (एवं आहारग શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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