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________________ प्रज्ञापनासूत्रे औदारिकाणि, एवम कायिक तेजस्कायिकान्यपि, वायुकायिकानां भदन्त ! कियन्ति औदारिकशरीराणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - बद्धानि च मुक्तानि च, द्विविधान्यपि यथा पृथिवीकायिकाना मौदारिकाणि, वैक्रियाणां पृच्छा, गौतम ! द्विविधानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - बद्धानि च मुक्तानि च तत्र खलु यानि तावद् बद्धानि तानि खलु असंख्येयानि समये समये अपह्रियमाणानि अपह्रियमाणानि पल्योपमस्यासंख्येयभागमात्रेण कालेन अपह्रियन्ते, नो चैव खलु अभ्यधिकानि स्युः, मुक्तानि यथा पृथिवी कायिकानाम्, आहारक fa) इसी प्रकार आहारक शरीर भी (लेयाकम्मगा जहा एएसिं चेव ओरालिया) तेजस और कार्मण जैसे इन्हीं के औदारिक ( एवं आउकाइया, तेउकाइया वि) इसी प्रकार अकायिक और तेजस्कायिक भी ४६४ (वाउकाइयाणं भंते! केवइया ओरालिय सरीरा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! वायुकायिकों के कितने औदारिक शरीर कहे हैं ? (गोयमा ! दुबिहा पण्णत्ता) है गौतम ! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा- बद्वेल्लगा य, मुक्केललगा य) वे इस प्रकार -बद्ध और मुक्त (दुबिहा वि जहा पुढविकाइयाणं ओरालिया) दोनों ही जैसे पृथ्वीकाइकों के औदारिकशरीर ( येउच्चियाणं पुच्छा ?) वैक्रिय शरीरों की पृच्छा (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम! दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार (बलगाय मुक्केललगा य) बद्ध और मुक्त (तत्थ णं जे ते बधेल्लागा) उनमें जो बद्ध हैं (ते णं असंखेज्जा) वे असंख्यात हैं ( समए समए) समय समय में (अवहीरमाणा २) अपहृत किये जाते हुए (पलिओ मस्स) पल्योपम के (असंखेज्जइ भागमेत्तण) असंख्यातवें भाग मात्र (कालेणं) काल से (अवहीरंति) अपहृत होते हैं (नो चेव णं अवहिया सिया) अधिक नहीं होते (मुक्केल्लागा) सरीरा वि) ०४ प्रमाणे महार४ शरीर संबंधी पशु समन ( तेयाकम्मगा जहा एएसिं चैत्र ओरालिया) तैन्स ने अणु संबंधी शोभना ४ मोहारि शरीरना उथन प्रभा समवा ( एवं आउकाइया तेउकाइया वि) से प्रभागे सायि भने तेस्ायि સંધમાં પણ સમજી લેવું. (वाकाइयाणं भंते! केवइया ओरालियसरीरा पण्णत्ता) हे भगवन् ! वायुअयिना भौहारिक शरीर डेंटला उद्या छे (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम! मे अठारना उडेला छे. (तं जहा बद्धेल्लगा य मुक्केललगा य) ते या प्रभाद्ध भने भुक्त ( दुविहा वि जहा पुढविकाइयाणं ओरालिया) भन्ने नेवा पृथ्वी अयिना मोहारिए (वेत्रियाणं पुच्छा) वैडिय शरीरानी पृथ्छा (गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता) हे गौतम! मे प्रारा ह्या छे (तं जहा) तेथे मा अअरे (बद्धेललगा य मुक्केललगाय) भद्ध भने भुक्त (तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा) तेयामां ने मद्ध छे (ते णं असंखेज्जा) तेथे असंख्यात छे (समए - समए) समय समयमा (अवहीरमाणा) अपहृत राता (पलिओनमस्स) पढ्यो पमना (असंखेज्जा इभागमेत्तेण) असण्यातमां लागभां (कालेणं) अणथी ( अवहीरंति) अपहृत थाय छे (नो चेत्र णं अवहिया सिया) अधिक नथी होता ( मुक्केल्लगा) भुस्त शरीर (जहा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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