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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ २० १४ भाषाविशेषमेदनिरुपणम् जातम् चतुर्थमसत्मृषाभाषाजातम्, इत्येतानि भदन्त ! चत्वारि भाषाजातानि भाषमाणः किमाराधकः? विराधकः ? गौतम! इत्येतानि चखारि भाषाजातानि आयुक्तं भाषमाण आराधको न विराधकः, तेन परम् असंयताविरताप्रतिहता प्रत्याख्यातपापकर्मा सत्यां भाषां भाषमाणो मृया वा, सत्यमृषा वा, असत्यमृषा वा, भाषां भापमाणो नो आराधको विराधकः, एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां सत्यमाषकाणां मृषाभाषकाणां सत्यमृषाभाषकाणाम् असत्यमृषाप्रकार कहे हैं ? (गोयमा! चत्तारि भासज्जाया पण्णत्ता) हे गौतम ! भाषा के चार प्रकार कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (सच्चमेगं भासज्जायं) भाषा का एक प्रकार सत्य (वितियं मोसं भासज्जाय) दूसरा भाषा का प्रकार मृषा है (तइयं सच्चामोसं भासज्जातं) तीसरा भाषाप्रकार सत्यामृषा है (चउत्थं असच्चामोसं भासज्जातं) चौथा भाषा का प्रकार असत्यामृषा है। __ (इच्चेइयाई भंते ! चसारि भासज्जायाई भासमाणे) इन चार भाषा प्रकारों को भाषता हुआ जीव (किं आराहए विराहए?) क्या आराधक होता है या विराधक होता है ? (गोयमा ! इच्चेइयाई भासजायाई आउत्तं भासमाणे) इन भाषा प्रकारों को उपयोगपूर्वक बोलने वाला (आराहए नो विराहए) आराधक होता है, विराधक नहीं (तेण परं) उपयोग लगा कर भाषण करने वाले से भिन्न (असंजय अविरय अप्पडिय-अपच्चक्खायपावकम्मे) असंयमी, अविरत, पाप कमें का प्रतिघात और प्रत्याघात न करने वाला (सच्च भास भासंतो) सत्यभाषा बोलता हुआ (मोसं वा सच्चामोसं वा असच्चामोसं बा भास भासमाणे नो आराहए विराहए) मृषा, सत्यामृषा अथवा असत्यामृषा भाषा भाषता हुआ आराधक नहीं, विराधक है गोयमा! चत्तारि भासज्जाया पण्णत्ता) गौतम ! भाषाना या२ २ ४ा छ (तं जहा) तेसो २ २ छ (सच्चमेगं भासज्जायं) भाषाला से ।२ सत्य (बितीयं मोसं भासउजाय) मा मापानी प्रा२ भूषा (तइयं सच्चामोस भासज्जाय) श्रीन मापान जार सत्याभूषा छ (च उत्थं असच्चामोसं भासज्जाय) यो भाषानी २ असत्या भृा छ (इच्चेइयाइं भंते ! चत्तारि भासज्जायाई भासमाणे) मा न्या२ मा रोने मत ७५ (किं आराहए विराहए ?) शुमा२।५४ डाय छे भ२ १ि२।५४ हाय छे ? (गोयमा ! इच्चे इयाई भासज्जयाई आउत्तं भसमाणे) २१भाषा प्रा२ने उपयो॥ ५५४ मसनार (आराहए; नो विराहए) मा२।५४ थाय छे, १२।५४ नही (तेण परं) S५ये ४२ मा ४२नारथी लिन (असंजय-अविरय-अप्पडिहय अपच्चक्खायपावकम्मे) असयभी मविरत, पा५ भने प्रतियात मने प्रत्याभ्यान न ४२ना२ (सच्चं भासं भासंतो) सत्य मापा मारतो 21 (मोसं वा सच्चामोसं वा असच्चामोसं वा भासं भासमणो नो आराहए विराहए) મૃષા, સત્યામૃષા, અથવા અસત્યામૃષા ભાષા બેલત થકો આરાધક નથી, વિરાધક છે શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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