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________________ ३४२ प्रज्ञापनासूत्रे अनन्तगुणसुरभिगन्धान्यपि गृहूणाति, एवं दुरभिगन्धान्यपि गहूणाति, यानि भावतो रसवन्ति गृहणाति तानि किम् एकरसानि गहूणाति यावत् किम् पश्चरसानि गहणाति ? गौतम ! ग्रहण द्रव्याणि प्रतीत्य एकरसान्यपि गहणाति, यावत्-पञ्चरसान्यपि गहणाति, सर्वग्रहणं प्रतीत्य नियमात् पश्चरसानि गृह्णाति, यानि रसतस्तितरसानि गणाति तानि किम् एकअणंतगुण सुन्भिगंधाइंपि गिण्हति ?) गंध से सुगंधित जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या एक गुण सुगंधित द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनन्त. गुण ? (गोयमा एगगुण सुब्भिगंधाई पि जाव अणंतगुणसुभिगंधाई पि गेण्हइ) हे गौतम ! एकगुणसुगंधित द्रव्यों को भी यावत् अनन्तगुण सुगंधित द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (एवं दुन्भिगंधाइपि गेण्हति) इसी प्रकार दुर्गध वालों को भी ग्रहण करता है। (जाइं भावओ रसमंताई गेण्हति ताई कि एगरसाईगिण्हति जाव किं पंचरसाई गेण्हति ?) भाव से रस बाले जिन द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या एक रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् क्या पांच रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा ! गहणव्वाई पड्डुच्च एगरसाइपि गिण्हति जाव पंचरसाइपि गेण्हति ?) हे गौतम ! ग्रहणद्रव्यों की अपेक्षा एक रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है यावत् पांच रस वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (सम्वग्गहणं पडुच्च नियमा पंचरसाई गेण्हति) सर्व ग्रहण की अपेक्षा नियम से पांचों रसों वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है (जाइरसओ तित्तरसाईगेण्हति) रस से तिक्त रसवाले जिन द्रव्यों को (जाई गंधओ सुभिगंधाई गिण्हइ ताई कि एगगुणसुब्मिगंधाई गिण्हति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाई पि गिण्हति ?) यी सुपित द्रव्याने ५३५ ४२ छ त शु એક ગુણ સુગંધિત દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે? યાવતુ અનન્ત ગુણ સુગન્ધિત દ્રવ્યને ગ્રહણ १२ छ? (गोयमा! एगगुणसुब्भिगंधाई पि जाव अपंतगुणसुभिगन्धाई पि गेहइ) 3 ગૌતમ ! એક ગુણ સુગન્ધિત દ્રવ્યને પણ યાવત્ અનન્તગુણ સુગન્ધિત દ્રવ્યને પણ ગ્રહણ अरे छ (एवं दुभि गंधाई वि गेहति) मे प्रा२ हुगन्धवाणामाने ५१ अडएय ४२ छ (जाई भावओ रसमंताई गेहति ताई कि एग रसाइं गिण्हति जाव किं पंचरसाई गेहति ?) माथी २साजरे द्रव्याने अहए ४२ छ, शु ४ २सा॥ द्रव्योन अहए। 3रे छ यावत् शु पांय २सवा द्रव्याने अडए४२ छ ? (गोयमा ! गहणव्वाई पडुच्च एग रसाइं पि गिण्हति जाव पंचरसाई पि गेण्हति ?) 3 गौतम ! अ द्रव्यानी અપેક્ષાએ એક રસવાળા દ્રવ્યોને પણ ગ્રહણ કરે છે, યાવત્ પાંચ રસવાળાં દ્રવ્યને પણ अक्षय उरे छे (सव्वग्गहणं पडुच्च नियमा पंच रसाई गेण्हति) स अडशनी मपेक्षाये નિયમથી ૫.૨ ૨સેવાળા દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે श्री प्र५न। सूत्र: 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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