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प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू०८ भाषाद्रव्यग्रहणनिरूपणम् कानि गृह्णाति, यावद् अनन्तगुणकालकानि गृह्णाति ? गौतम ! एकगुणकालकान्यपि गृह्णाति यावद् अनन्तगुणकालकान्यपि गृहणाति एवं शुक्लान्यपि, यानि भावतो गन्धवन्ति गृह्णाति तानि किम् एकगन्धानि गृहणाति द्विगन्धानि गृह्णाति ? गौतम ! ग्रहण द्रव्याणि प्रतीत्य एकगधान्यपि द्विगन्धान्यपि गृहणाति, सर्वग्रहणं प्रतीत्य नियमाद द्विगन्धानि गृहणाति, यानि गन्धतः सुरभिगन्धानि ग्रहणाति तानि किम् एकगुणसुरभिगन्धानि गहूणाति, यावत्-अनन्तगुणसुरभिगन्धान्यपि गृह्णाति ? गौतम ! एकगुणसुरभिगन्धान्यपि, यावद् है (ताई कि एगुणकालाई गेण्हति जाव अगंतगुणकालाई गिण्हति ?) क्या एक गुण काले उन द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् अनन्तगुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा! एगगुणकालाई पि गिण्हति जाव अणंतगुणकालाई पि गेण्हति) हे गौतम ! एक गुण काले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है यावत् अनन्त गुण काले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (एवं जाव सुकिल्लाई पि) इसी प्रकार यावत् शुक्ल द्रव्यों को भी
(जाइं भावओ गंधमंताई गिण्हति) भाव से जिन गंघ वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है (ताई किं एगगंधाई गिण्हति, दुगंधाइगिण्हति ?) क्या एक गंध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? अथवा दो गंधवाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा! गहणदव्याई पडुच्च एगगंधाई पि दुगंधाई पि गिण्हति) हे गौतम ! ग्रहण द्रव्यों की अपेक्षा एक गंध वालों को भी और दो गंध वालो को भी ग्रहण करता है (सव्वग्गहणं पडुच्च नियमा दुगंधाई गिण्हति) सर्वग्रहण की अपेक्षा नियम से दो गंध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है। (जाई गंधओ सुन्भिगंधाइ गिहा कि एगगुणसुभिगंधाइं गिम्हति जाव
(जाइ वण्णओ कालाई गिण्हति) वर्ष थी जा २ द्रव्याने अड ४३ छे (ताई कि एगगुणकालाई गेण्हति जाव अणंतगुणकालाई गिण्हति ?) शुमे गुर ॥ तद्रव्याने ગ્રહણ કરે છે યાવત અનન્ત ગુણ કાળ દ્રવ્યોને ગ્રહણ કરે છે?
(गोयमा एगगुणकालाई पि गिण्हति जाव अणंतगुणकालाई पि गेण्हति) गौतम! એક ગુણ કાળા દ્રવ્યોને ગ્રહણ કરે છે, યાવત્ અનન્ત ગુણ કાળા દ્રવ્યોને પણ ગ્રહણ કરે छ (एवं जाव सुक्किलाई पि) मे४ प्रमाणे यावत् शु४१ याने ५५] अ3रे छ.।
(जाई भावओ गंधमंताई गिण्हति) माथी रे मज द्रव्याने गए ३ छ (ताई कि एगगंधाई गिण्हति दुगंधाई गिण्हति) शुमे या द्रव्याने हाय रे छ २०५१ मे या द्रव्याने बह रे छ ? (गोयमा ! गहण दवाई पडुच्च एग. गंधाई पि दुगंधाइ पि गिण्हति) 3 गौतम ! यह द्रव्यानी अपेक्षाये मे पायाने पY भने में अधवाजामाने ५५ अ ४२ छ (सव्वग्गणं पडुच्च नियमा दुगंधाई गिण्हति) સર્વ ગ્રહણની અપેક્ષાથી નિયમથી બે ગંધવાળા ને ગ્રહણ કરે છે
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩