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________________ ३४० प्रज्ञापनासूत्रे वन्ति गृह्णाति, स्पर्शवन्ति गृह्णाति ? गौतम ! वर्णवन्त्यपि यावत् स्पर्शवन्त्यपि गृह्णाति, यानि भावतो वर्णवन्त्यपि गृह्णाति तानि किम् एकवर्णानि गृह्णाति यावत् पञ्चafa गृह्णाति ? गौतम ! ग्रहणद्रव्याणि प्रतीत्य एकवर्णान्यपि गृह्णाति यावत् पञ्चवर्णान्यपि गृह्णाति, सर्व ग्रहणं प्रतीत्य नियमात् पञ्चवर्णानि गृह्णाति तद्यथा - कृष्णानि tara ofearfa हरिद्राणि शुक्लानि यानि वर्णतः कृष्णानि तानि किम् एकगुणकाल ( जाई भावतो गिoes) जिन द्रव्यों को भाव से ग्रहण करता है (ताई किं aणमंताई गेहति) क्या वर्णवान् द्रव्यों को ग्रहण करता है (गंधमंताई, रसमंताई, फासमंताई गेहति ? (गंध वाले, रस वाले, स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा ! वण्णमंताई पि जाव फासमंताई पि गेण्हति) हे गौतम! वर्ण वाले भी यावत् स्पर्श वाले भी द्रव्यों को ग्रहण करता है । (जाई भावतो वण्णताई पि गेहति) वर्ण वाले भी जिन द्रव्यों को भाव से ग्रहण करता है (ताई किं एगवण्णाई गेण्हति जाव पंच वण्णाई गेण्हति १) क्या एक वर्णवाले द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् पांचों वर्णा वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा ! गहणदव्वाई' पडुच्च) हे गौतम ! ग्रहणद्रव्यों की अपेक्षा गवण्णाई पि गेहइ) एक वर्ण वालों को भी ग्रहण करता है (जाव पंचवण्णाईपि गेहति यावत पाँचों वर्णों वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा पंचवण्णाई गेण्हति) सर्वग्रहण की अपेक्षा नियम से पांचों वर्णों वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है (नं जहा-कालाई, नोलाइ, लोहियाई, हालिदाइ, सुकिल्लाई ) वह इस प्रकार - -काले, नीले, लाल, पीले और शुक्ल द्रव्यों को ( जाई वण्णओ कालाई गिण्हति) वर्ण से काले जिन द्रव्यों को ग्रहण करता ( जाइ भावतो गिण्es) ने द्रव्याने लावथी रे छे (ताई किं वण्णमंताई मेहति १) शु वर्षावान् द्रव्य ४२ छे (गंधमंताई रसमंताई, फासमंताई, गेहति ? ) अधवाणा, रसवाणा, स्पर्शवाजा द्रव्याने ग्रह १रे छे ? ( गोयमा ! वण्णमंताई वि जाव फास मंताई' वि गेण्हति) हे गौतम! वर्षावामा पशु यावत् स्पर्शवाणा पशु द्रव्याने ग्रहण करे छे ( जाई भावतो वण्णताई पि गेहति) वर्षावाजा पशु ने द्रव्याने लावथी श्रणु रे छे (ताई कि एग वण्णाई जाव पंच वण्णाई गेण्हति ) शु मे वर्षावाणा, द्रव्यने ग्रहण छे यावत् यांचे वशेवाणा द्रव्यनि ग्रह रे छे ? (गोयमा ! गहणदव्वाई पडुच्च) हे गौतम ! श्रणु द्रव्योनी अपेक्षाये (एगवण्णाइ पि गेव्हइ ) मे वर्षावाणामाने यशु श्रद्धालु १२ छे (जाव पंच वण्णाई पि गेण्हति यावत् यांचे वाशेवाजा द्रव्याने या रे ( सव्वग्गणं पडुच्च नियमा पंचवण्णाई गेण्हति ) सर्व ग्रहानी अपेक्षामे नियभथी पांये वाशेवाजा द्रव्याने श्रड रे छे (तं जहा-कालाई नीलाई लोहियाई, हारिहाई, सुकिल्लाई) તે આ પ્રકારે કાળા, નીલા, લાલ, પીળા અને સફેદ દ્રબ્યાને પણ ગ્રહણ કરે છે. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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