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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू. ८ भाषाद्रव्यग्रहणनिरूपणम् _____३४३ गुणतितरसानि गृह्णाति, यावद् अनन्तगुणतिक्तरसानि गृह्णाति ? गौतम ! एकगुणतिक्तान्यपि गृह्णाति यावत् अनन्तगुणतिक्तान्यपि गृह्णाति, एवं यावद् मधुररसः, यानि भावतः स्पर्शवन्ति गृह्णाति तानि किम् एक स्पर्शानि गृह्णाति, यावद् अष्ट स्पर्शान्यपि गृह्णाति ? गौतम ! ग्रहणद्रव्याणि प्रतीत्य नो एकस्पर्शानि गृह्णाति, द्वि स्पर्शानि गृह्णाति, यावत्-त्रिस्पर्शानि, चतुःस्पर्शानि गृह्णाति, नो पञ्चस्पर्शानि गृह्णाति , यावत् नो अष्टस्पर्शानि गृह्णाति, सर्व ग्रहण करता है (ताई कि एगगुणतित्तरसाईगिण्हति जाव अणंतगुणतित्तरसाई गिण्हति ?) क्या एक गुण तिक्त रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत अनन्तगुण तिक्त द्रव्यों को ग्रहण करता है? (गोयमा! एगगुणतित्ताई पि गिण्हति जाव अणंतगुणतित्ताइपि गिरोहति) हे गौतम ! एक गुण तिक्त रसवाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण तिक्त द्रव्यों को भी ग्रहण करता है । (एवं जाव मधुररसो) इसी प्रकार यावत् मधुर रस तक। (जाई भावतो फास मंताई गेहति ताई किं एगफासाइं गेण्हति जाव अट्ट फासाइं गिण्हति ?) भाव से जिन स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या एक स्पर्शवाले उन द्रव्यों को ग्रहण करता है यावत् आठ स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च णो एगफासाइं गिण्हति दुफासाइंगिण्हइ जाव चउफासा गेण्हति) हे गौतम ! ग्रहणद्रव्यों की अपेक्षा एक स्पर्शवाले द्रव्यों को नहीं ग्रहण करता, दो स्पर्श वालों को ग्रहण करता है यावत् चार स्पर्श वालों को ग्रहण करता है (णो पंचफासाई गेण्हति) पांच स्पर्श वालों को नहीं ग्रहण करता (जाव नो अट्ठफासाइं गेण्हति) यावत् न आठ (जाइ रसओ तित्तरसाई गिण्हति) २सथी Lagn २सवा द्रव्याने हा रे छ (ताई कि एगगुणतित्तरसाई गिण्हति जाव अणंतगुणतित्तरसाई गिण्हति) शु से ગુણ તિક્ત રસવાળા દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે, યાવત્ અનન્ત ગુણ તિક્ત દ્રવ્યોને ગ્રહણ रे छ (गोयमा ! एगगुणतित्ताइ पि गिण्हति जाव अर्णतगुणतित्ताई पि गिण्हति) है ગૌતમ! એક ગુણ તિક્ત દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે, યાવત્ અનત ગુણ તિક્ત દ્રવ્યને પણ अड ४२ छ (एवं जाव मधुररसो) मे रे यावत् मधुर २स सुधा (जाइ भावतो फासमंताई गेण्हति ताई किं एग फासाई गेण्हति जीव अट्र फासाई गिण्हति ?) माथी २ -५ वा द्रव्याने अ५ ४२ छ शु मे २५शा द्रव्याने ગ્રહણ કરે છે યાવત્ આઠ સ્પર્શવાળા દ્રવ્યને ગ્રહણ કરે છે? (गोयमा ! गहणव्वाइं पडुच्च णो एग फासाइं गिण्हति दुफासाइं गिण्हइ जाव चउ. फासाई गेहति) गौतम ! ७५ द्रव्यानी अपेक्षाये ४ २५शा द्रव्याने नथी । કરતા, બે સ્પર્શવાળાને ગ્રહણ કરે છે. યાવત્ ચાર સ્પર્શવાળાઓને ગ્રહણ કરે છે તો पंच फासाई गेण्हति) ५५ २५ जाने नथी ह ४२ता (जाव नो अटु फासाई श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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