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प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू० ८ भाषाद्रव्यग्रहणनिरूपणम् भाषां भाषन्ते, असत्यामृषामपि भाषां भाषन्ते, इत्यर्थः, 'मणुस्सा जाच वेमाणिया' मनुष्याः यावद्-वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकाः 'एए जहा जीवा तहा भाणियव्वा' एते-मनुष्यादि वैमानिकपर्यन्ताः यथा जीवा:-समुच्चयजीवाः प्रतिपादिता स्तथा भणितव्याः ॥सू० ७॥
भापा द्रव्यग्रहण वक्तव्यता मूलम्-जीवे णं भंते ! जाति दव्वाति भासत्ताए गिण्हइ, ताई किं ठियाइं गेण्हइ अठियाई गेण्हइ ? गोयमा ! ठियाइं गिण्हइ नो अठियाइ गिहइ, जाइं भंते ! ठियाइं गिण्हइ, ताइं किं दव्यतो गिण्हइ, खेत्तभो गिण्हइ, काल ओ गिण्हइ, भावओ गिाहइ ? गोयमा ! दवओ वि गिण्हइ, खेत्तओ वि, कालओ, भावओ वि गिण्हइ, जाति भंते ! दव्यओ गे हइ, ताई कि एगपदेसिताइं गिण्हइ, दुपदेसियाइं जाव अणंतपएसियाइं गेण्हइ ? गोयमा ! नो एगपदेसियाइं गेण्हइ जाव नो असंखेजपएसियाइं गिण्हइ, अगंतपएसियाई गेण्हइ, जाइं खेत्तओ गेव्हइ ताई किं एगपएसोगाढाइं गेहइ, दुपएसोगाढाइं गेण्हइ, जाव असंखेजपएसोगाढाइं गेहइ, जाइं काल भो गेण्हइ ताई कि एगसमय ठियाइं गेण्हइ दुसमयठिइयाइं गिराहइ जाव असंखिजसमयठिइयाई गेण्हइ ? गोयमा ! एगसमयोटेइयाइं पि गेण्हइ दुसमयठिइयाई पि गेण्हइ, जाव असंखेजप्तमय ठिइयाइं पि गेण्हइ, जाई भावओ गेण्हइ ताई किं वण्णमंताई गेण्हइ गंधमंताई रसमंताई फासमंताई गेण्हइ ? गोथमा ! वपणमंताई पि, जाव फासमंताई पि गेण्हइ, जाई भावओ वष्णमंताई पि गेण्हइ ताई कि एगवण्णाइं गेण्हइ जाव पंच वण्णाई गेण्हइ ? गोयमा ! गहणदवाइं पडुच्च एगवण्णाई पि गेण्हइ, जाव पंच वण्णाई पि गेण्हइ, सञ्चग्गहणं पडुच्च णियमा पंचवण्णाई गेण्हइ, तं जहा-कालाई नीलाई लोहियाइं हालिदाई सुकिल्लाइं, जाई वण्णओ समझना चाहिए, अर्थात् सामान्य जीवों की जो वक्तव्यता कही है, वही इन देवों के विषय में भी समझ लेनी चाहिए ॥६॥ જોઈ એ, અર્થાત્ સામાન્ય જીવોની જે વક્તવ્યના કહી છે, તેજ આ દેવના વિષયમાં પણ સમજી લેવી જોઈએ છે ૭
श्री प्रशान॥ सूत्र : 3