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प्रज्ञापनासूत्रे माया लोभे पिज्जे तहेव दोसे य । हासभए अक्खाइय उवधाइय णिस्सिया दसमा ॥१॥, क्रोधो, मानं, माया, लोभः प्रेम तथैव द्वेषश्च । हास्यं भयम् आख्यायिका उपघातनिःसृता दशमी ॥१॥ गौतमः पृच्छति-'अपज्जत्तिया ण भंते ! कइविहा भासा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! अपर्याप्तिका खल भाषा कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा!' हे गौतम ! 'दुविहा पण्णत्ता' अपर्याप्ता भाषा द्विविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा-सच्चा मोसा असच्चा मोसा य२' तद्यथा-सत्यामृषा, असत्यामृषा च, गौतमः पृच्छति-'सच्चा मोसा णं भंते ! भासा अप. जत्तिया कतिविहा पण्णता ?' हे भदन्त ! सत्या मृषा खलु भाषा अपर्याप्तिका कतिविधा प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-'गोयमा !' हे गौतम ! 'दसविहा पण्णत्ता' अपर्याप्ता सत्या मृषा भाषा दशविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा-उप्पण्णमिस्सिया १५ तद्यथा-उत्पन्न मिश्रिता ?, 'विगतमिस्सि. यार' विगतमिश्रिता२ 'उप्पण्ण विगयमिस्सिया ३' उत्पन्नविगतमिश्रिता, 'जीवमिस्सिया४' माया (४) लोभ (५) प्रेम (राग) (६) द्वेष (७) हास्य (८) भय (९) आख्यायिका और (१०) औपघातिक, इनसे निकली हुई भाषा मृषा भाषा है। ॥१०॥
गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! अपर्याप्तिका भाषा के कितने भेद है ? ___ भगवान-हे गौतम ! अपर्याप्तिका भाषा दो प्रकार की कही गई है-एक सत्यामृषा अर्थात् उभयरूप (मिश्र) भाषा, दूसरी असत्यामृषा अर्थात् व्यवहार भाषा जिसे न सत्य और न असत्य में ही गिना जाता है। इसे अनुभय भाषा भी कहते हैं।
गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! सत्यामृषा अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ?
भगवान-हे गौतम ! सत्यामृषा अपर्याप्तिका भाषा दस प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है-(१) उत्पन्न मिश्रिता (२) विगतमिश्रिता (३) उत्पन्न विगत(४) वास (५) प्रेम (६) द्वेष (७) हास्य (८) लय (4) Pulist माने (१०) मो५ઘાતિક, એમનાથી નીકળેલી ભાષા મૃષા છે કે ૧ છે - શ્રી ગૌતમસ્વામી પુનઃ પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન ! અપર્યાપ્તિકા ભાષાના કેટલા ભેદ છે?
શ્રી ભગવાન ગૌતમ! અપર્યાતિક ભાષા બે પ્રકારની કહેલી છે–એક સત્યા મૃષા ભાષા અર્થાત્ ઉભય રૂપ (મિશ્ર) ભાષા,બીજી અસત્ય મૃષા અર્થાત્ વ્યવહાર ભાષા જે ન સત્યમાં કે ન અસત્યમાં ગણાય છે. તેને અનુભય ભાષા પણ કહે છે.
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવાન ! સત્યા મૃષા અપર્યાસિક ભાષા કેટલા પ્રકારની કહેલી છે?
શ્રી ભગવાન હે ગૌતમ ! સત્યામૃષા અપર્યાસિકા ભાષા દશ પ્રકારની કહેલી છે, તે આ छ:-(१) अपन मिश्रित। (२)शित मिश्रिता (3) सपन्न विगत मिश्रित (४) ०१
श्री प्रशान। सूत्र : 3