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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ११ सू०५ भाषाकारणादिनिरूपणम् जीवमिश्रिता४, 'अजीवमिस्सिया ५, अजीवमिश्रिता५, 'जीवाजीवमिस्सिया६' जीवाजीवमिश्रिता६, 'अणंतमिस्सिया७, अनन्तमिश्रिता, परित्तमिस्सिया८' प्रत्येकमिश्रिता८, 'अद्रमिस्सिया९' अद्धामिश्रिता९ 'अद्धद्धामिस्सिया१०' अद्धाद्धामिश्रिता१०, तत्र अनुत्पन्नैः सह संख्यापूरणार्थम् उत्पन्ना मिश्रिता यत्र सा उत्पन्नमिश्रिता सत्या मृषा भाषा भवति, यथा कस्मिंश्चिनगरे गामे वा न्यूनेषु अधिकेषु वा शिशुषु उत्पन्नेषु अद्यास्मिन् नगरे दशशिशय उत्पन्ना इत्यादि भाषा उत्पन्नमिश्रिता सत्या मृषा व्यपदिश्यते १ एवम् अविगतैः सह संख्यापूरणार्थ विगताः-मृता, मिश्रिता यत्र सा विगतमिश्रिता सत्या मृषा भाषा भवति, यथा पूर्वोतरीत्यैव कुत्रचित स्थाने न्यू नेषु अधिकेषु वा वृद्धेषु मृतेषु अद्यास्मिन् नगरे द्वादश वृद्धा मिश्रिता (४) जीवमिश्रिता (५) अजीवमिश्रिता (६) जीवाजीवमिश्रिता (७) अनन्तमिश्रिता (८) प्रत्येकमिश्रिता (९) अद्धामिश्रिता और (१०) अद्धद्धामिश्रिता । इनका स्वरूप इस प्रकार है (१) उत्पन्नमिश्रिता-अनुत्पन्नों के साथ संख्या की पूर्ति के लिए जिस में उत्पन्नों को मिला दिया जाय, वह उत्पन्न मिश्रिता सत्यामृषा भाषा कहलाती है । यथा-किसी ग्राम या नगर में कम या अधिक शिशुओं का जन्म होने पर भी ऐसा कहना कि आज इस नगर में दश बालकों का जन्म हुआ हैं । इत्यादि प्रकार की भाषा उत्पन्न मिश्रिता सत्यामृषा भाषा कहलाती है। (२) विगतमिश्रिता-विगत का अर्थ है मृत और जो जो मृत न हो वह अविगत है। अविगतों के साथ, संख्या की पूर्ति के हेतु जिस में विगत अर्थात मृतकों को मिला दिया जाय, वह भाषा विगतमिश्रिता सत्यामृषा कहलाती है। जैसे पहले की ही भांति किसी ग्राम या नगरादि में न्यून या अधिक वृद्ध जनों मिश्रिता (५) म०१ मिश्रिता (६) १०१ मिश्रित (७) मनन्त मिश्रित (८) प्रत्ये: मिश्रित (e) मामिश्रिता (१६) भने भद्धा मिश्रिता. तभनु स्व३५ २॥ शते छ (૧) ઉત્પન્નમિશ્રિત્તા-અનુત્પની સાથે, સંખ્યાની પૂર્તિને માટે જેમાં ઉત્પન્ન મેળવી દેવાય, તે ઉત્પન્ન મિશ્રિતા ભાષા સત્યા મૃષા કહેવાય છે. જેમ કેઈ ગામ કે નગરમાં ઓછા કે વધારે બાળકને જન્મ થવા છતાં પણ એમ કહેવું કે-આજ આ નગરમાં દશ બાળકને જન્મ લે છે. આવા પ્રકારની ભાષા ઉત્પન્ન મિશ્રિતા સત્યા મૃષા ભાષા કહેવાય છે. (૨) વિગત મિશ્રિતા–વિગતને અર્થ છે મૃત અને જે મૃત ન હોય તે અવિગત છે. અવિગતેની સાથે સંખ્યાની પૂતિના હેતુ જેમાં વિગત અર્થાત વિગતે ને મેળવી દેવાય તે ભાષા વિગત મિશ્રિતા સત્યમૃષા કહેવાય છે. જેમ પહેલાની જેમ કોઈ ગામ કે નગરાદિમાં ન્યૂન અગર અધિક, વૃદ્ધ જનેના મરણનાં એમ કહેવું કે-આજ આ નગરમાં प्र०४० શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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