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________________ २६४ प्रज्ञापनासूत्रे अयं मे भर्नेदारका इति ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र संज्ञिनः, अथ भदन्त ! उष्ट्रो गौणः खरो वे टकः, अजः, एडको जानाति युवाणः अहमेतद् ब्रवीमि ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र संज्ञिनः, अथ भदन्त ! उष्ट्रो यावद् एडको जानाति आहारम् आहरन् अहमेतद् आहरामि ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, यावद् नान्यत्र संज्ञिनः, अथ भदन्त ! उष्ट्रो गौणः खरः घोटकः अनः एडको जानाति इमौ मे अम्बापितरौ ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, चालक अथवा अबोध बालिका जानती है (अयं मे भटिदारए, अयं मे भहिदार यत्ति) यह मेरे स्वामी का पुत्र है, यह मेरे स्वामी की पुत्री है ? (गोयमा ! णो इणढे समझे, णण्णस्य सणिणो) गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, संज्ञी को छोड कर (अह भंते ! उट्टे गोणे खरे घोडए अए एलते) हे भगवन् ! ऊंट, बैल, गधा, घोडा, बकरा, भेड को (जाणति) जानता है (बुयमाणे) बोलता हुआ (अहमेसे वुयामि) मैं यह बोलता हूं (गोयमा ! णो इणढे सम?) गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (णपणत्थसपिणणो) संज्ञी को छोड कर।। (अह भंते ! उट्टे जाव एलते जाणति आहारं आहारेमाणे भगवन् ! ऊंट यावत भेड जानता है आहार करता हुआ (अहमेसे आहारेमि) मैं यह खाता हूं (गोयमा! जो इण टूटे समढे जाव णण्णस्थ सणिणो) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं, संज्ञी को छोड कर (अह भंते ! उटे खरे घोडए अए एलए जाणति-अयं मे अंमापियरो) हे भगवन् ! ऊट, गधा, घोडा, बकरा, भेड जानता है कि यह मेरे माता-पिता हैं? (गोयमा ! णो इणठे समटे, जाव णण्णस्य सणिणो) हे गौतम ! यह अर्थ मथ माय मावि छ (अयं मे भट्टिदारए, अयं भट्टि दारयत्ति) मा अमा। स्वामीना पुत्र छ, २मा२। स्वाभीनी पुत्री छे ? (गोयमा ! णो इणद्वे समटे, गौतम ! मे मथ समथ नथी, (णण्णत्थ सणिणो) संज्ञा सिपाय (अहभंते ! उट्टे गोणे, खरे घोडए अए एलते) 3 गवन् ! 2, मह, गधेड, घोडी, ५४२. धेटा (जाणति) nो छ (बुयमाणे) भासता ५४. (अहमेसे बुयामि) 21 माख छ (गोयमा ! णो इणटे समट्टे) गौतम ! २0 Aथ समथ नथी (णण्णत्थ सण्णिणो) સંસીને છેડીને (अह भंते ! उट्टे जाव एलते जाणति आहार आहारेमाणे) लान् ! यावत् ५ | छ मा.२ री २७स (अहमेसे आहारेमि) ९ मा मा छु (गोयमा ! णो इणटे समढे जाव णण्णत्थ सणिणो) 3 गौतम ! २५॥ अथ समर्थ नथी सभी सिवाय (अह भंते ! उटे खरे घोडए अए एलए जाणति-अयं मे अम्मापियरो) 3 भगवन् ! 2, अघाडी, ५४२, ५३ छ , २॥ भा२भाता-पिता छ ? (गोयमा ! णो इणदे समटे जाव णण्णत्थ सण्णिणो) 3 गौतम ! २अथ समय नथी, संज्ञा सिवाय श्री प्रशान। सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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