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प्रबोधिनी टीका पद ११ सू० ३ भाषापदनिरूपणम्
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मन्दकुमारिका वा जानाति आहारम् आहरन्ती अहमेतद् आहरामीति ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र सज्ञिनः, अथ भदन्त ! मन्दकुमारको वा मन्दकुमारिका वा जानाति - इमौ में अम्बापितरौ ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र संज्ञिनः, अथ भदन्त ! मन्दकुमारको वा, मन्दकुमारिका व जानाति इदं मे स्वामिकुलम्, इदं मे स्वामिकुलम् ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र संज्ञिनः, अथ भदन्त ! मन्दकुमारको वा मन्दकुमारिका वा जानाति -अयं मे भर्तृदारकः संज्ञी के सिवाय
( अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा) हे भगवन् मंदकुमार या मन्दकुमारिका ( जाणइ ) जानते हैं (आहारं आहारेमाणे) आहार करते हुए (अहमेसे आहारमाहरेमित्ति) मैं इस आहार को करता हूं । (गोयमा !) हे गौतम ! ( णो णट्ठे समट्ठे) यह अर्थ समर्थ नहीं है । (णण्णत्थ संण्णिणो) संज्ञी के सिवाय
( अह भंते ! मंदकुमारए वा, मंदकुमारिया वा जाणति) अथ हे भगवन् ! मन्दकुमार या मन्दकुमारिका जानती है (अयं मे अम्मापियरो) ये मेरे मातापिता हैं ? ( गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ( णण्णत्थ सण्णिणो ) संज्ञी को छोडकर
(अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति) अथ हे भगवन् ! अबोध बालक अथवा अबोध बालिका जानती है (अयं मे अतिराउलो ) यह मेरे स्वामी का घर है (अयं मे अइराउलेत्ति) यह मेरे स्वामी का घर है, ऐसा (गोयमा ! नो इणट्टे समट्ठे) गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है (णण्णत्थ सण्णिणो ) संज्ञी को छोडकर |
(अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जाणति) हे भगवन् ! अबोध
(अह भंते ! मंदकुमार वा मंदकुमारिया ) हे भगवन् ! भहयुद्धिकुमार अगर कुमारि (जाणइ) समल श छे (आहार आहारेमाणे) आहार उरता था है ( अहमे से आहारमाहरेमित्ति) हु' था प्रहारनो आहार ४३ छु ? (गोयमा !) हे गौतम! (जो इणट्टे समट्ठे) म अर्थ मरोर नथी, (णण्णत्थ सण्णिणो ) संज्ञाने छोडीने
( अह भंते! मंदकुमार वा, मंदकुमारिया वो जाणति) अथ है लगवन् ! भन्हठुभार अगर भन्द्रकुमारी ला छे (अयं मे अम्मा पियरो) मा भारा भातापिता छे (गोयमा ! जो इट्टे समट्टे) गौतम ! आा अर्थ समर्थ नथी (णण्णत्थ सण्णिणो ) संज्ञीने छोडीने ( अह भंते! मंदकुमारए वा, कुमारिया वा जणति) अथ हे भगवन् भन्हकुमार मगर भन्हकुमारि भए! छे (अयं मे अति राउलो) मा भारा स्वामीनु ध२ छे (अयं मे अइराउलेत्ति) या भारा स्वामीनु घर छे. खेभ (गोयमा ! नो इणट्ठे समट्ठे) हे गौतम! भा अर्थ समर्थ नथी (णण्णत्थ सण्णिणो ) सज्ञाने छोडीने
( अह भंते ! मंदकुमारए वा मंदकुमारिया वा जणति) हे लगवन् ! अमोध आज
श्री प्रज्ञापना सूत्र : 3