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प्रज्ञापनासूत्रे परिमंडलस्त णं भंते ! संठाणस्स असंखेजपएसियस्स असंखेजपएसो गाढस्त अचरमस्स चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दवट्याए पएसट्टयाए दव्वटुपएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहा रयणप्पभाए अप्पाबहुयं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं एवं जाव आयए, परिमंडलस्स णं भंते ! संठागस्त अणंतपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दवट्याए पएसट्रयाए दवटुपएसट्टयाए कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा ? गोयमा ! जहा संखेज्जपएसोगाढस्स, नवरं संक मेणं अणंतगुणा, एवं जाव आयए । परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स अणंतपएसियस्त असंखेज्जपएसोगाढस्स अचरमस्स य जहा रयणप्पभाए, नवरं संकमे अणंतगुणा, एवं जाव आयए ॥सू०६॥
छाया-कति खलु भदन्त ! संस्थानानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पञ्च संस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-परिमण्डलम् , वृत्तम् , व्यस्रम् , चतुरस्रम् , आयतं च, परिमण्डलानि खलु भदन्त !
संस्थान वक्तव्यता शब्दार्थ-(कइ गं भंते ! संठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! संस्थान कितने कहे हैं ? (गोयमा ! पंच संठाणा पण्णत्ता) हे गौतम ! पांच संस्थान कहे हैं ? (तं जहा) वे इस प्रकार (परिमंडले) परिमंडल (वट्टे) वृत्त (तंसे) व्यस्र-तिकोना (चउरंसे) चौकोर (आयते य) और आयत-लम्बा (परिमंडला णं भंते ! संठाणा कि संखेजा असंखेजा, अणता?) हे भगवन् ! परिमंडल संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अनन्त हैं ? (गोयमानो संखिजा, नो असंखिज्जा, अणंता) हे गौतम ! संख्यात
સંસ્થાન વક્તવ્યતા साथ-(कइणं भंते ! संठाणा पण्णत्ता ?) 3 भगवन् ! संस्थान 21 ? (गोयमा ! पंच संठाणा पण्णत्ता) 3 गौतम ! पांय सस्थान छे (तं जहा) तया ॥ शत (परिमंडले) परिभ६ (वट्टे) वृत्त (तंसे) त्रि -व्यस (चउरसे) यतुण्डे (आयतेय) अने आयत (Aiml)
(परिमंलाणं भंते ! संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता ?) भगवान् ! परिभस सथानशसभ्यात छ ? मसज्यात छ १ अनन्त छ ? (गोयमा ! नो संखिज्जा, नो असंखिज्जा
श्री प्रशान। सूत्र : 3