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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू. ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चस्माचरमत्वनिरूपणम् १७७ संस्थानानि किं संख्येयानि, असंख्येयानि अनन्तानि ? गौतम ! नो संख्येयानि, नो असंख्येयानि, अनन्तानि एवं यावद् आयतानि परिमण्डलम् खलु भदन्त ! संस्थानम् किं संख्ये. यप्रदेशिकम् असंख्येयप्रदेशिकम् अनन्तप्रदेशिकम् ? गौतम ! स्यात् संख्येयप्रदेशिकम् , स्याद् असंख्येयप्रदेशिकम् स्याद् अनन्तप्रदेशिकम्, एवं यावत् आयतम्, परिमण्डलं खलु भद. न्त ! संस्थानं संख्येयप्रदेशिकम् किं संख्येयप्रदेशावगाढम्, असंख्येयप्रदेशावगाढम् अनन्तप्रदेशाघगाढम् ? गौतम ! संख्येयप्रदेशावगाढम्, नो असंख्येयप्रदेशाववाढम्, नो अनन्तप्रदेशावगानहीं, असंख्यात नहीं, अनन्त हैं (एवं जाव आयता) इसी प्रकार आयत तक । (परिमंडला णं भंते ! संठाणा किं संखेज्जा, असंखेज्जा, अणंता?) हे भगवन् ! परिमंडल संस्थान क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अनन्त हैं ? (गोयमा ! नो संखिज्जा, नो असंखिज्जा, अणंता) हे गौतम ! संख्यात नहीं असंख्यात नहीं, अनन्त हैं (एवं जाव आयता) इसी प्रकार आयत तक। (परिमंडले णं भंते ! संठाणे किं संखेज्जपएसिए, असंखेजपएसिए, अणंत. पएसिए) हे भगवन् ! परिमंडल संस्थान क्या संख्यातप्रदेशी है, असंख्यातप्रदेशी है या अनन्तप्रदेशी है ? (गोयमा ! सिय संखेज्जपएसिए) कथंचितू संख्यातप्रदेशी (सिय असंखेजपएसिए) कथंचित् असंख्यातप्रदेशी (सिय अणंतपएसिप) कथंचितू अनन्त प्रदेशी है (एवं जाव आयते) इसी प्रकार आयत तक कहता। (परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेजपएसिए कि संखेजपएसोगाढे) हे भगवन् ! संख्यात प्रदेशी परिमंडल संस्थान क्या संख्यात प्रदेशों में अवगाढ होता है ? (असंखेजपएसोगाढे) असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ होता है? (अप्रांत पएसोगाढे) अनन्त प्रदेशों में अवगाढ होता है ? (गोयमा ! संखेज्जपएसोगाढे, अणता) 8 गौतम ! सध्यात नथी, मसभ्यात नथी, मन छ (एवं जाव आयता) એજ રીતે આયત સુધી (परिमंडलेणं भंते ! संठाणे किं संखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसिए अणतपएसिए) ३ ભગવન્! પરિમંડલ સંસ્થાન શું સંખ્યાત પ્રદેશ છે, અસંખ્યાત પ્રદેશ છે અગર અનન્ત प्रदेशी छ ? (गोयमा ! सिय संखेज्जपएसिए) ४थायित् सभ्यात प्रदेशी (सिय असंखेज्जपएसिए) ४थयित् असभ्यात प्रदेशी (सिय अणतपएसिए) ४थायित् अनन्त प्रदेशी (एवं जाव आयते) ये रे आयत सुधी हे __ (परिमडलेगं भंते ! सठाणे संखेज्जपएसिए कि संज्ज्जपएसोगाढे) भगवान् ! सभ्यात प्रदेशी परिभ३ सथान शु सध्यात प्रदेशमा २८ थाय छ १ (असंज्जएपसोगाढे असण्यात प्रदेशमा म थाय छ ? (अणंतपएसोगाढे) मनन्त प्र० २३ श्री प्रशायना सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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