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प्रज्ञापनासूत्रे ११' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः 'स्यात्-कदाचित् 'चरमश्वावक्तव्यश्च' इति ध्यपदिश्यते, स्थापना.
० 'सिय चरमे य अत्तव्वयाई य' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् चरमश्चावक्तव्यौ च इति व्यपदिश्यते स्थापना-०:: : 'सिय चरमाई य अवत्तव्यए य १३' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् कदाचित् 'चरमौ चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते स्थापना:: : ० "सिय चरमाई य अवतव्वयाई य१४' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित्, 'चरमौ चावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते स्थापना-:: : ० 'नो चरमे य अवत्तब्धए य १५' नो चरमश्चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते 'णो अवरमे य अवत्तव्वयाई य १६ नो अचरमश्चावक्तव्गै च' इति व्यपदिश्यते, 'णो अचरमाई य अवत्तव्यए य १७ नो अचरमौ चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते, 'णो अचरमाई य अवत्तव्बयाई १८ नो अचरमौ चावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते 'सिय चरमे य अचरमे य अवत्तव्वए य १९ सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् 'चरमश्चाचरमश्चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते स्थापना-:.. 'सिय चरमे य अचरमे य अवत्तव्ययाइं य २०' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित-'चरमश्चा. चरमश्चावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते स्थापना-०.: 'सिय चरमे य अचरिमाई य अवत्तव्यए य २१' सप्तादेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् 'चरमश्चाचरमौ चावक्तव्यश्च' इति कथंचितू 'चरम-अवक्तव्य' कहलाता है, स्थापना यों है-:: ० सप्त प्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरम-अवक्तव्यो' कहलाता है, उसकी स्थापना इस प्रकार है० उसे कथंचित् 'चरमो-अवक्तव्य' कह सकते हैं । स्थापना इस प्रकार है-०० ० उसे कथंचित् 'चरमौ-अवक्तव्यौ' भी कहा जा सकता है। स्थापना यों है-° : : सप्तप्रदेशी स्कंध 'अचरम-अवक्तव्य' नहीं कहा जा सकता । 'अचरम-अवक्तव्यो' भी नहीं कहा जा सकता । 'अचरमौ-अव. क्तव्य' भी नहीं कहा जा सकता । 'अचरमो-अवक्तव्यो' भी नहीं कहा जाता। हां, कथंचित् 'चरम-अचरम-अवक्तव्य' कहा जा सकता है । उसकी स्थापना यों है-: ० . सप्तप्रदेशी स्कंध 'चरम-अचरम-अवक्तव्यो' कहा जा सकता है, स्थापना इस प्रकार है-० ० : उसे 'चरम-अचरमौ-अवक्तव्य' भी
मा २ छ-०: : थायित् 'चरमौ अवक्तव्य, ५ ४ी शय छ, स्थापना साशत छ8880 थायित् 'चरमौ अवक्तव्यौ ५ ४ी २४य छे. तेनी २५॥५॥ माम छ ० ० ० 8 से प्रदेशी २४.५ 'चरम-अवक्तव्य. नथी ४४ी शता. अचरम-अवक्तव्यौ पण नथी ही ता. 'अचरमौ-अवक्तव्य ५७ नथी ही शत. अचरमौ-अबक्तब्यौं ५ नथी ही शsal. ! यथित् चरम-अचरम-अवक्तव्य ही शाय छ, तनी स्थापना माम छ :: ससशी २४न्ध 'चरम-अचरम-अवक्तव्यौ ४ी शय छे स्थापना मा शत छ-०० तर चरम-अचरमौ-अवक्तव्यौ ५५५ ४. शाय छ स्थापना ।
श्री प्रशान। सूत्र : 3