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प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम्
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एकः परमाणुः द्वितीये प्रदेशे एकः परमाणुः, तृतीये प्रदेशे द्वौ परमाणू, द्वयोर्विश्रेणिस्थयोरेकैकः परमाणुर्वतेते तदा आद्यन्त प्रदेशावगाढी चरमो मध्यप्रदेशावगाढोऽचरमः, विश्रेणिस्थ प्रदेशद्वयावगाढौ द्वौ परमाणू अवक्तव्यौ इति तत्समुदायात्मक षट्प्रदेशिक स्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमश्चावक्तव्यौच' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाइं च अचरमाई य अवत्तव्वए य २५' षट् प्रदेशिक स्कन्धः स्यात् कदाचित् 'चरमौ चाचरमौ च अवक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते तथाहि-यदा स स्कन्धः पञ्चसु प्रदेशेषु वक्ष्यमाण चत्वारिंश स्थापनारीत्या ४० समश्रेण्या चावगाहते तत्र चतुर्धाकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या व्यवस्थितेषु आद्यप्रदेशत्रये एकैकः परमाणुः, चतुर्थे द्वौ परमाणू पश्च मे विश्रेणिस्थे एकः परमाणुस्तदा आद्यन्तप्रदेशवर्तिनौ द्वौ परमाणू चरमौ, मध्यप्रदेशवर्तिनौ द्वौ अचरमौ, विश्रेणिस्थ एकः परमाणुरवक्तव्य इति तत्समुदायाप्रदेश में एक परमाणु, दूसरे प्रदेश में एक परमाणु, तीसरे प्रदेश में दो परमाणु
और विश्रेणिस्थित प्रदेशों में एक-एक परमाणु रहता है, तब आदि और अन्त के प्रदेशों में अवगाढ परमाणु 'चरमौ' मध्य के प्रदेश में अवगाढ 'अचरम' और विश्रेणि में स्थित दो प्रदेशों में अवगाढ परमाणु 'अवक्तव्यो' कहलाते हैं। इन सबका पिण्ड षट्पदेशी स्कंध भी 'चरमो-अचरम-अवक्तव्यो' कहा जाता है।
षट्प्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरमौ-अचरमौ-अवक्तव्य' भी कहा जाता है, क्योंकि जब वह आगे कही जाने वाली चालीसवीं स्थापना के अनुसार पांच प्रदेशों में अवगाढ होता है और उनमें से समणि में स्थित चार आकाशप्रदेशों में से पहले के तीन प्रदेशों में एक-एक परमाणु होता है, चौथे प्रदेश में दो परमाणु होते हैं और विश्रेणि में स्थित पांचवें प्रदेश में एक परमाणु होता है, तब आदि और अन्त के प्रदेशों में रहे हुए दो परमाणु 'चरमौ' कहलाते हैं, मध्य के प्रदेशों में स्थित दो परमाणु 'अचरमो' कहलाते हैं और विश्रेणिस्थित एक परमाणु 'अवक्तव्य' कहलाता है। इस प्रकार सब का समुदाय वह षट्पदेशी स्कंध 'चरमौ-अचरमो-अवक्तव्य' कहा जाता है। માણુ ત્રીજા પ્રદેશમાં બે પરમાણુ અને વિશ્રેણે સ્થિત પ્રદેશમાં એક-એક પરમાણુ રહે छ, त्यारे माहि मन मन्तन प्रदेशमा अढ ५२मा 'चरमौ;' मध्यन प्रदेशमा माद 'अचरम' मने विश्रेणीमा स्थित में प्रदेशमा Aq ५२मा 'अवक्तव्यौ' हैपाय छे. थे. अधाना 43 पटूप्रदेशी २४५ ५ 'चरमौ-अचरम-अवक्तव्यौ' उपाय छे.
षटूप्रदेशी २४५ प्रथित् 'चरमौ-अचरमौ-अवक्तव्य' ५ घडी ४य छ, भो જ્યારે તે આગળ કહેવાનારી ચાલીસમી સ્થાપનાના અનુસાર પાંચ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે અને તેમનામાંથી સમશ્રેણીમાં સ્થિત ચાર આકાશ પ્રદેશમાંથી પહેલાના ત્રણ પ્રદેશોમાં એક–એક પરમાણુ હોય છે. ચેથા પ્રદેશમાં બે પરમાણુ હોય છે અને વિશ્રેણીમાં સ્થિત પાંચમા પ્રદેશમાં એક પરમાણુ હોય છે, ત્યારે આદિ અને અન્તના પ્રદેશમાં રહેલા બે પરમાણુ 'चरमौ' हवाय छ, मध्यना प्रदेशमा स्थित मे ५२मार 'अवक्तव्य' ४ाय छे. से
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩