SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञापनासूत्रे त्मक षट् प्रदेशिक स्कन्धोऽपि तथैव व्यपदिश्यते 'सिय चरमाइं य अचरमाइं य अवत्तव्वयाई य २६ षट्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् कदाचित् 'चरमौ च अचरमौ च अवक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा षट् प्रदेशात्मकः स्कन्धो वृक्ष्यमाणैकचत्वारिंशस्थापना ४१ रीत्या समश्रेण्या विश्रेण्या च षट्सु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते तदा द्वौ परमाणु आयन्तप्रदेशावगाढौ चरमौ, द्वौ च परमाणू मध्यप्रदेशावगाढौ अचरमौ, द्वौ च परमाणू विश्रेणिस्थप्रदेशद्वयावगाढौ अवक्तव्यौ इति तत्समुदायात्मक षट्प्रदेशिक स्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमौ चावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते, अथ पूर्वोक्त षट्प्रदेशिक स्कन्ध पर्यन्तानां परमाण्वादीनाम् अङ्कात्परतः स्थापनाः द्रष्टव्याः-तत्र एक बहुत्वे षड्भङ्गाः ६-चरमम् १ अचरमम् २ अवक्तव्यम् ३, चरमाणि ४, अचरमाणि ५, अवक्तव्यानि, द्विकसंयोगे द्वादश भङ्गाः-१२ तत्र चरमाचरमयोश्चतुर्भङ्गी-चरमम् अचरमम् १ चरमम् अचरमाणि २, चरमाणि अचरमम् चर षट्प्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरमो-अचरमो-अवक्तव्यो' कहा जाता है। वह इस प्रकार-जब षट्प्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली एकतालसवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणि और विश्रेणि में स्थित छह प्रदेशों में अवगाढ होता है, तष आदि और अन्त में अवगाढ दो परमाणु चरमौ कहलाते हैं, मध्य में स्थित दो परमाणु अचरमौ होते हैं और विश्रेणि के दो प्रदेशों में अवगाढ दो परमाणु अवक्तव्यौ होते हैं । इस प्रकार इन सब का समूहरूप षट्प्रदेशी स्कंध भी 'चरमौ -अचरमो-अवक्तव्यौ' कहलाता है। ___ अय परमाणु से लेकर छहप्रदेशी स्कंध तक की स्थापनाएं अंकों के अनुक्रम से दिखलाई जाती है। उनमें एकवचन और बहुवचन से छह भंग होते हैं-(१) चरम (२) अचरम (३) अवक्तव्य (४) चरमाणि (५) अचरमाणि (६) अवक्तव्यानि । दो-दो को मिलाने से बारह भंग होते हैं, उनमें चरम-अचरम की अधाना समुहाय ते पाशा २5चरमौ-अचरमौ-प्रवक्तव्य ४३वाय छे. पट प्रदेशी २४५ ४थयित् 'चरमौ-अचरमौ-अवक्तव्यौ' उपाय छे. ते प्रारे જ્યારે ષપ્રદેશી આંધ આગળ કહેવાનારી એકતાલીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણિ અને વિશ્રેણિમાં સ્થિત છ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે, ત્યારે આદિ અને અન્તમાં અવગાઢ બે પરમાણુ ચરમી કહેવાય છે, મધ્યમાં રહેલા બે પરમાણુ અચરમી હોય છે અને વિશ્રેણીના બે પ્રદેશોમાં અવગાઢ બે પરમાણુ અવક્તવ્યી થાય છે. એ પ્રકારે એ બધાને સમૂહ રૂપ षट् अशी २४.५ ५४ 'चरमौ,-अचरमौ-अवक्तव्यौ' ४३१५ छे. હવે પરમાણુથી લઈને છ પ્રદેશી સ્કેન્દ્રની સ્થાપના અંકના અનુકમથી દેખાડાય छ. तमामा से क्यन मने पहुवयनथी छ म थाय छ-(१) चरम (२) अचरम (3) अवक्तव्य (४) चरमाणि (५) अचरमाणि (६) अवक्तव्यानि मेमेने भेजवाथी मार A थाय छ, तमामा य२म मयरमनी यौलीय छ (१) चरम अचरम (२) चरम अचर શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy