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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद १० सू० ५ द्विप्रदेशादिस्कन्धस्य चरमाचरमत्वनिरूपणम् १५१ य अचरमे य अवत्तबए य २३' पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात-कदाचित् , 'चरमौ चाचरमथावक्तव्यश्च इति व्यदिश्यते तथाहि यदा पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणैकविंश स्थापना२१रीत्या चतुर्यु आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या विश्रेण्या चावगाहते तत्र त्रिषु आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या व्यवस्थितेषु आधे एकः परमाणुः वर्तते मध्ये द्वौ परमाणू अन्ते एकः परमाणुः, चतुर्थेऽपि आकाशप्रदेशे विश्रेणिस्थ एकः परमाणुवर्तते तदा त्रयाणामाकाशप्रदेशानां मध्ये आद्यन्तप्रदेशावगाढौ द्वौ परमाणू चरमौ, मध्यप्रदेशवति द्वयणुकतु मध्यवर्तित्व दचरमः, विश्रेणिस्थश्चैकः परमाणुः केवलपरमाणुः त् चरमाचरमशब्दाभ्यामवक्तव्यो भवति इति तत्समुदायास्मकः पञ्चप्रदेशिकस्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमश्चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई य अचरमे य अबत्तव्चयाई य २४' पश्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् चामौ चाचरमचावक्तव्यो च' इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाण द्वाविंशस्थापनासकते, किन्तु 'कथंचितू चरमाणि-अचरम-अवक्तव्य' कह सकते हैं, क्योंकि जब कोई पंचप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली इक्कीसवीं स्थापना के अनुसार चार आकाशप्रदेशों में समश्रेणी अथवा विश्रेणी से अवगाहन करता हैं, उनमें से तीन समश्रेणी से स्थित आकाशप्रदेशों में से पहले में एक परमाणु रहता है, मध्य में दो परमाणु रहते हैं, अन्त में एक परमाणु होता है, चौथे आकाशप्रदेश में विश्रेणी स्थित एक परमाणु रहता है, तब तीन आकाशप्रदेशों में आदि और अन्त के प्रदेशों में अवगाढ दो परमाणु 'चरमौ' और मध्य प्रदेशवर्ती व्यणुक मध्यवर्ती होने के कारण 'अचरम' कहलाता है । विश्रेणी में स्थित एक परमाणु, केवल परमाणु के समान चरम और अचरम शब्दों द्वारा वक्तव्य न होने के कारण अवक्तव्य होता है। इन सब का समुदाय पंचप्रदेशी स्कंध 'चरमो-अचरम-अवक्तव्य' कहा जाता है। पंचप्रदेशी स्कंध कथंचित् 'चरमो-अचरम-अवक्तव्यो' भी कहा जा सकता नथी ४ही श४॥ 'चरम-अचरमाणि-अवक्तव्यानि नथी पाती, 'चरम-अचरम-अवक्तव्य ५ नथी ही प ४थयित् चरमाणि-अचरम-अवक्तव्य ४ी २४य छ, કેમકે જ્યારે કોઈ પંચ પ્રદેશી ઔધ આગળ કહેવામાં આવનાર એકવીસમી સ્થાપ. નાના અનુસાર આકાશ પ્રદેશમાં સમશ્રેણી અથવા વિશ્રેણીથી અવગાહન કરે છે, તેઓ માંથી ત્રણ સમશ્રેણથી સ્થિત આકાશ પ્રદેશમાંથી પહેલામાં એક પરમાણું રહે છે, મધ્યમાં બે પરમાણ રહે છે અન્તમાં એક પરમાણુ હોય છે, જેથી આકાશ પ્રદેશમાં વિશ્રેણીમાં સ્થિત એક પરમાણુ રહે છે, ત્યારે ત્રણ આકાશ પ્રદેશોમાં આદિ અને અન્તના પ્રદેશમાં सवाद मे ५२माशु यरमी, मन मध्य प्रदेशवती या मध्यात थवाना २0 'अचरम કહેવાય છે. વિશ્રેણીમાં સ્થિત એક પરમાણુ, કેવળ પરમાણુના સમાન ચરમ અને અચ२म | दारा तय नावाने पारणे 'अवक्तव्य' थाय छ, म मधाने समुदाय पय प्रदेशी २४न्ध 'चरमौ अचरम-अवक्तव्य' वाय छे. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૩
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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