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________________ १५२ प्रज्ञापनासूत्रे २२रीत्या पश्चसु आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या विश्रेण्या चावगाहते तत्र त्रयः परमाणवस्त्रिषु आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या व्यवस्थितेषु वर्तन्ते, द्वौ परमाणू च विश्रेणिस्थयोयोराकाशप्रदेशयो वर्तेते तदा त्रयाणामाकाशप्रदेशानां मध्ये आद्यन्तप्रदेशवर्तिनौ द्वौ परमाणू चरमौ, मध्यश्च परमाणुरचरमः, द्वौ च विश्रेणिस्थौ अवक्तव्यौ भवतः इति तत्समुदायात्मकः पञ्चप्रदेशिक स्कन्धोऽपि 'चरमौ चाचरमश्वावक्तव्यौ च' इति व्यपदिश्यते, 'सिय चरमाई च अचरमाइं च अवत्तव्यए य २५' पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्-कदाचित् 'चरमौ चाचरमौ चावक्तव्यश्च' इति व्यपदिश्यते, तथाहि यदा पश्चप्रदेशिकः स्कन्धो वक्ष्यमाणत्रयोविंशस्थापना२३रीत्या समश्रेण्या विश्रेण्या च पञ्चसु आकाशप्रदेशेषु अवगाहते, तत्र चत्वारः परमाणवश्चतुषु आकाशप्रदेशेषु समश्रेण्या व्यवस्थितेषु वर्तन्ते एकश्च परमाणुर्विश्रेणिस्थो वर्तते तदा चतुर्णामाकाशप्र. है। वह इस प्रकार-जब पंचप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली बाईसवीं स्थापना के अनुसार पांच आकाशप्रदेशों में समश्रेणी और विश्रेणी से अवगाहन करता है, उनमें से तीन परमाणु समश्रेणी में स्थित तीन आकाश प्रदेशों में अवगाढ होते हैं और दो परमाणु विश्रेणी में स्थित दो आकाश प्रदेशों में अवगाढ होते हैं, तब आकाशप्रदेशों में से आदि-अन्त प्रदेशवर्ती दो परमाणु 'चरमो' कहलाते हैं और मध्यका परमाणु 'अचरम' कहलाता है और विश्रेणी में स्थित दो परमाणु 'अवक्तव्यौ' होते हैं । इस प्रकार इनका समुदाय वह पंचप्रदेशी स्कंध 'चरमौ-अचरम-अवक्तव्यो' ऐसा कहा जाता है। पंचप्रदेशी स्कंध कथंचितू , 'चरमौ-अचरमौ-अवक्तव्य' भी कहलाता है। जब पंचप्रदेशी स्कंध आगे कही जाने वाली तेईसवीं स्थापना के अनुसार समश्रेणी और विश्रेणी में स्थित पांच आकाशप्रदेशों में अवगाढ होता है और उनमें से चार परमाणु समश्रेणी में स्थित चार आकाशप्रदेशों में अवगाढ होते हैं और एक परमाणु विश्रेणी में स्थित होता है। तब उन चार में से आदि-अन्त पये प्रदेशी २४५ ४थयित् चरमौ अचरम-अवक्तव्यौ' ५५ ही शय छे. ते २ પ્રમાણે-જ્યારે પંચ પ્રદેશ સ્કંધ આગળ કહેવામાં આવનાર બાવીસમી સ્થાપનાના અનુસાર પાંચ આકાશ પ્રદેશમાં સમશ્રણ અને વિશ્રેણીથી અવગાહન કરે છે. તેમાંથી ત્રણ પરમાણુ સમશ્રેણીમાં રહેલા ત્રણ આકાશ પ્રદેશોમાં અવગાઢ થાય છે. અને બે પરમાણ વિશ્રેણીમાં રહેલ બે આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે. ત્યારે આકાશ પ્રદેશોમાંથી આદિ અને અંતના પ્રદેશવતી બે પરમાણુ રામ કહેવાય છે, અને વચલું પરમાણું 'अचरम' उपाय छ, मन (श्रेणीमा २७ मे ५२मा 'अवक्तव्यौ' डाय छे. २॥ शते माना समुदाय ३५ ते पय प्रदेशी २४.५ 'चरमौ अचरम अवक्तव्यौ' में प्रमाणे उपाय छे. पय प्रदेशी २४५ ४थायित् 'चरमौ-अचरमौ-अवक्तव्य' ५५ ही शय छ, न्यारे પંચ પ્રદેશી આગળ કહેવામાં આવનાર તેવીસમી સ્થાપનાના અનુસાર સમશ્રેણી અને વિશ્રેણીમાં સ્થિત પાંચ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે અને તેમાંથી ચાર પરમાણુ श्री प्र५न। सूत्र: 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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