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________________ प्रज्ञापनासूत्रे स्यात्-कदाचित् चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः अवक्तव्यो भवति, यदा चतुष्प्रदेशिकः स्कन्ध एकस्मिन्नाकानप्रदेशेऽवगाहते तदा परमाणुवत् चरमाचरमशब्दाभ्यां वक्तुमशक्यतया अवक्तव्यो बोध्यः, स्थापना ७ सप्तमी वक्ष्यते-परन्तु-'नो चरमाई ४' चतुष्पदेशिकस्कन्धो नो चरमाणि' इति व्यपदिश्यते प्रागुक्तयुक्तेः, 'नो अचरमाई ५' नो वा 'अचरमाणि' इति व्यः पदेष्टुं शक्यो भवति, 'नो अवत्तव्वयाई ६' नो 'अवक्तव्यानि' इति वा व्यपदिश्यते 'नो चरमे य अचरमे य ७' नो 'चरमश्च अचरमश्च' इति वा व्यपदिश्यते, 'नो चरमे य अचरमाई य ८' नो 'चरमश्च अचरमाणि च' इति वा व्यपदेष्टुं शक्यः प्रागुक्तयुक्तेः, किन्तु नवमस्तु भङ्गस्तत्र संघटते एवेत्याह-'सिय चरमाई अचरिमे य' चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात्कदाचित् , 'चरमौ च अचरमश्च' इति व्यपदेष्टुं शक्यो भवति, यदा खलु चतुष्प्रदेशिकस्कन्धत्रिषु आकाशप्रदेशेषु वक्ष्यमाणाष्टमस्थापनारीत्याऽवगाहते तदा आद्यन्तप्रदेशावगाढौ द्वौ तीसरा भंग उसमें घटित होता है, अर्थात् वह कथंचित् अवक्तव्य होता हैं, क्यों कि जब वह चौप्रदेशी स्कंध एक ही आकाशप्रदेश में अवगाढ होता है तब परमाणु के सदृश उसे न चरम कहा जा सकता है, न अचरम कहा जा सकता है, अतएव वह अवक्तव्य है। इसकी स्थापना सातवीं आगे कही जाएगी। मगर चौप्रदेशी स्कंध को 'चरमाणि' नहीं कह सकते । इस विषय में युक्ति पहले के ही समान समझनी चाहिए, उसे 'अचरमाणि' भी नहीं कह सकते, 'अवक्त. व्यानि' भी नहीं कह सकते । 'चरम-अचरम' भी उसे नहीं कहा जा सकता, 'चरम-अचरमाणि' भी नहीं कह सकते । इस विषय में युक्ति पूर्ववतू है। हां, नौवां भंग उसमें घटित होता है, उसे कहते हैं-चौप्रदेशी स्कंध 'चरमो-अचरम' है, क्यों कि जब कोई चौप्रदेशी स्कंध तीन आकाशप्रदेशों में, आगे कही जाने वाली आठवीं स्थापना के अनुसार अवगाढ होता है, तब आदि और अन्तिम प्रदेशों में अवगाढ दो चरम (चरमौ) होते हैं और मध्य में अवगाढ प्रदेश अचઅવક્તવ્ય હોય છે, કેમકે જ્યારે તે ચતુઃ પદેશ સ્કન્ય એક જ આકાશ પ્રદેશમાં અવગાઢ થાય છે. ત્યારે પરમાણુની સમાન તે નથી ચરમ કહી શકાતે, નથી અચરમ કહી શકાતે તેથી જ તે અવક્તવ્ય છે. એની સ્થાપના સાતમી આગળ કહેવાશે. પણ ચૌપ્રદેશી સ્કન્ધને 'चरमाणि' नथी ही शता. ये विषयमा युति भनी म सभापी मे. तेन भयरमा ५९] नयी ४ही शsiti. 'अवक्तव्यानि' ५ नथी ४डी . 'थरम-मय२म ५५ तेने नथी ही शत 'चरम-अचरमाणि' ५ नयी ४ी शत। २ मामतमा યુક્તિ પહેલાની જેમ જ છે, હા નવમે ભંગ એમાં ઘટિત થાય છે, તેને કહે છે–ચી प्रदेशी २४न्ध, 'चरमौ-अचरम' छ, म न्यारे । यो प्रदेशी २४५ त्र २४१२२ પ્રદેશમાં, અ ગળ કહેલી આઠમી સ્થાપનાના અનુસાર અવગાઢ થાય છે, ત્યારે આદિ भने मन्तिम प्रशाथी मशाद मेयरम (चरमौ) थाय छे. अने भक्ष्यमा म हेश श्री प्रशान॥ सूत्र : 3
SR No.006348
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages955
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size62 MB
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