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प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू.२ विशेषोपपातनिरूपणम्
९४७ गौतम ! अनुसमयम् अविरहिताः उपपातेन प्रज्ञप्ताः एवम् अप्कायिकानामपि तेजाकायिकानामपि, वायुकायिकानामपि, वनस्पतिकायिकानामपि अनुसमयम् अविरहिताः उपपातेन प्रज्ञप्ताः, द्वीन्द्रिया खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिताः उपपातेन प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टेन अन्त मुहूर्तम्, एवं त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियाः, संमूर्छिम पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः खलु भदन्त कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन ___ (पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं काल विरहिया उपवाएणं पण्णत्तां हे भगवन् । पृथिवीकायिक कितने काल तक उपपात से रहित कहे हैं? (गोयमा ! अणुसमयमविरहियं उववाएणं पण्णत्ता) हे गौतम ! प्रत्येक समय विना विरह के उपपात कहा है (एवं आउकाइयाण वि) इसी प्रकार अप्कायिकों का भी (तेउकाइयाण वि) तेजस्कायिकों का भी (वाउकाइयाण वि) वायुकायिकों का भी (वणस्सइकाइयाण वि) यनस्पतिकायिकों का भी (अणुसमय) प्रतिसमय (अविरहिया) विरह से रहित (उववाएणं )उपपात से (पण्णत्ता) कहे हैं
(बेइंदिया णं भते! केवइयं काल विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! दीन्द्रिय जीव कितने काल तक उपपात से रहित कहे है ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समय, उक्कोसेणं अंतोमुत्त) हे गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक (एवं तेइंदिय चरिंदिया इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय संमुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवइयं काल विर
(पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता?) भगवन्! पृथिवी4x 2 समय सुधौ ७५पातथी २त ४ा छ ? (गोयमा ! (अणुसमयमविरहियं उववाएणं पण्णत्ता ?) गौतम! प्रत्ये४ समय वि२४ विनान। पात ४ो छ (एवं आउकाइयाणं वि) मे रे २५०४45ना ५ (तेउकाइयाणं वि) ते२४४यिछीना ५Y (वाउकाइयाणं वि) वायुयाना ५] (वण्णस्सइ काइयाणं वि) वनस्पतियिोन पy (अणु समय) प्रति समये (अविरहिया) वि२९ २हित (उववाएणं) ७५यातथी (पण्णत्ता) ४ह्या छ
(वेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?) भगवन ! दया सुधी ५५तथी २डित उद छ (गोयमा! जहपणेणं एग समय, उकोसेणं अंतोमुहुत्तं) गौतम ! धन्य से समय, अट मन्तभुत सुधी (एवं तेइंदिय चउरिंदिय) से रीते त्रीन्द्रिय, अतुलन्द्रिय
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨