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________________ ९४६ प्रज्ञापनासूत्रे प्रज्ञताः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन षड्मासान्, असुरकुमाराः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम, उत्कृष्टेन चतविंशति मुहूर्तान् नागकुमाराः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन चतुर्विंशति मुहूर्तान, एवं सुवर्णकुमाराणाम्, विद्युत्कुमाराणाम्, अग्निकुमाराणाम्, द्वीप - कुमाराणाम्, दिक्कुमाराणाम्, उदधिकुमाराणाम्, वायुकुमाराणाम्, स्तनितकुमाराणाम् प्रत्येकं जघन्येन एकं समयम्, उत्कृष्टेन चतुर्विंशति मुहूर्तान्, पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ताः ? कहे हैं ? ( गोयमा ! जहणेणं एवं समयं उक्कोसेणं छम्मासा) हे गौतम! जघन्य एक समय तक एवं उत्कृष्ट छह मास तक (असुरकुमारा णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! असुरकुमार कितने काल तक उपपात से रहित कहे गए हैं ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उक्को सेणं चउव्वीसं मुहुत्ता) हे गौतम! जघन्य एक समय तक, उत्कृष्ट चौवीस मुहूर्त्त तक ( एवं ) इसी प्रकार (सुवण्णकुमाराणं) सुपर्णकुमारों का (विज्जुकुमाराणं) विद्युत्कुमारों का (अग्गिकुमाराणं) अग्निकुमारों का ( दीवकुमाराणं) द्वीपकुमारों का (दिसाकुमाराणं) दिशा कुमारों का (उदहि कुमाराणं) उदधिकुमारों का (वाउकुमाराणं) वायुकुमारों का ( धणियकुमाराणं) स्तनितकुमारों का (पत्तेय) प्रत्येक का (जहणणेण एगं समयं ) जघन्य एक समय (उक्कोसेणं चउव्वीस मुहुत्ता) उत्कृष्ट चौवीस मुहुर्त उपपात विरह कहना पातथी रहित ह्या छे ? ( गोयमा ! जहण्णेणं एवं समयं उक्कोसेणं छम्मासा) હે ગૌતમ ! જઘન્ય એક સમય, ઉત્કૃષ્ટ છ માસ સુધી (असुरकुमाराणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववारणं पण्णत्ता ?) डे लगवन् ! असुकुमार डेंटला आज सुधी उपयातथी रहित उडेला छे ? (गोयमा ! जहणणेण एगं समयं; उक्कोसेण चउब्वीसं मुहुत्ता) हे गौतम! धन्य मे सभय उत्कृष्ट योवीस भुहूर्त सुधी ( एवं ) थे अरे (सुवण्ण कुमाराणं) सुवाणु भारोना (विज्जुकुमाराणं) विद्युतभारोना ( अग्गिकुमाराणं) अग्निकुभाना ( दीवकुमाराण) द्वीपहुभारोना (दिसाकुमाराणं) हिशा कुमारीना (उदहिकुमाराणं) उदधिभारोना (वाकुमाराणं) वायुभाना ( धणियकुमाराणं) स्तनिभाना (पत्तेय) प्रत्येना ( जहणणं एगं समयं ) ४धन्य मे समय (उक्कोसेण चउव्वीसं मुहुत्ता) उष्ट ચાવીસ મુહૂ ઉપપાત રહિત કહેવા. શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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