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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५.०१६ सामान्यस्कन्धपर्यायनिरूपणम् गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-अजन्यानुत्कृष्टावगाहनकानां पुद्गलानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकः पुद्गलोऽजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकस्य पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया पट्स्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः स्थित्या चतु:स्थानपतितः, वर्णादि अष्ट स्पर्शपर्यवैश्व पदस्थानपतितः, जघन्यस्थितिकानां भदन्त ! पुद्गलानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन स्थिति से तुल्य होता है (अजहण्णमणुक्को सोगाहणगाणं भंते! पोरग लाणं पुच्छा ?) मध्यम अवगाहनावाले हे भगवन् ! पुद्गलों की पृच्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं (से hणणं भते ! एवं बुच्चइ - ( अजहण्णमणुको सोगाहणगाणं पोग्गलाणं अनंता पज्जव पण्णत्ता) किस कारण हे भगवन् ! ऐसा कहा कि मध्यम अवगाहना वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा ! अजहण्णमणुक को सोगाहणए पोग्गले) हे गौतम ! मध्यम अवगाहना वाला पुद्गल ( अजहरणमणुक्को सोगाहणगस्स पोग्गलस्स दव्बट्टयाए तुल्ले) मध्यम अवगाहना वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य (पएसट्टयाए छट्ठाणचडिए) प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (ओगाहणयाए चउडाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित (ठिईए चट्टानवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (वण्णाइ- अट्ठफासपज्जवेहि य छट्टाणवडिए) वर्णादि से तथा आठ स्पर्श के पर्यायों षट्स्थानपतित ९१३ वाजा पशु से प्रारे (नवर) विशेष (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुझ्य थाय छे (अजहण्णमणुक्को सोगाहणगाणं भंते! पोग्गलाणं पुच्छा ?) मध्यम अवगाहुना वाणा हे भगवन् ! युद्दगसोनी पृथ्छा ? (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) डे गौतम ! अनन्त पर्याय उद्या छे ( से केणटुणं भंते ! एवं बुच्चइ - अजहण्णमणुकोसोगाहणगाणं पोग्गलाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता) शा रखे हे भगवन् ! येवु उधु छे भव्यम अवगाहनावाणा युगसोना अनन्त पर्याय उद्या छे (गोयमा अजहण्णमणुक्को सोगाहणर पोग्गले) हे गौतम ! मध्यम अवशानावाना युद्दजस (अजहण्णमणुक्को सो गाहणम्स पोग्गलस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) मध्यम अवगाहनावाणी युगसथी द्रव्यनी अपेक्षाओ तुझ्य (पएसटुयाए छट्टाणवडिए) अहेशानी आये. क्षाये षट्स्थान पतित (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहनानी अपेक्षाये यतुःस्थान पतित (ठिईए चउट्ठागवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित (वण्णाइ अट्ठफासपज्जवेहिं य छट्टाणत्रडिए) वर्णाद्विथी तथा आई स्पर्शना पर्यायाथी ષસ્થાન પતિત થાય છે. प्र० ११५ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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