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________________ ९१२ प्रज्ञापनासूत्र पुद्गलानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यावगाहनकानां पुद्गलानां अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यावगाहनकः पुद्गलो अधन्यावगाहनकस्य पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः प्रदेशार्थतया षट्रस्थानपतितः, अवगाहनार्थतया तुल्यः, स्थित्या चतु:स्थानपतितः, वर्णादि-उपरितन चतुःस्पशैश्च षट्स्थानपतितः, उत्कृष्टानगाहनकोऽपि एवञ्चैव, नवरं स्थित्या तुल्यः, अनघन्यानुत्कृष्टावगाहनकानां भदन्त ! पुद्गलानां पृच्छा, णवडिए) षट्स्थानपतित होता है। ___ (जहण्णोगाहणगाणं भते ! पोग्गलाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पुद्गलों की पृच्छा ? (गोयमा ! अणंतापज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते एवं वुच्चइ जहण्णोगाहणगाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा गया है कि जघन्य अवगाहना वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा ! जहण्णोगाहणए पोग्गले जहण्णोगाहणगस्त पोग्गलस्स वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्य अवगाहना वाला पुद्गल जघन्य अवगाहना वाले पुद्गल से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा षट्स्थानपतित (ओगहणट्ठयाए तुल्ले) अवगाहना से तुल्य (ठिईए चउहाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (वण्णाइ उवरिल्लफासेहि य छट्ठाणवडिए) वर्ण आदि से तथा ऊपर के चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित (उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव) उत्कृष्ट अवगाहना वाला भी इसी प्रकार (णवरं) विशेष (ठिईए तुल्ले) (जहण्णोगाहणगाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा ?) उसावन् ! धन्य भवगराउन पुगसानी १२छ। ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णता) गौतम ! अनन्त पर्याय ४ा छ (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जइण्णोगाहणगाणं पोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?) सायन् ! ॥ ४२0 सेम वायु छ है ४धन्य २५१२॥ना भुगतान मनन्त पर्याय ४॥ छ (गोयमा ! जहण्णोगाहणए पोग्गले जहण्णोगाहणगस्स पोगलस्स दव्वदयाए तुल्ले) गौतम ! धन्य અવગાહનાવાળા પુદ્ગલ જઘન્ય અવગાહનાવાળા પુદ્ગલથી દ્રવ્યની દૃષ્ટિએ તુલ્ય छ (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रशानी ष्टिये षट्स्थान पतित (ओगाहणयाए तुल्ले) २३१॥ नाथी तुल्य (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित (वण्णाइ उवरिल्ल फासेहिय छट्ठाणवडिए) १४ माथी तथा अ५२ना यार २५ थी षट्स्थान पतित (उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव) कृष्ट माना શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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