________________
९१४
प्रज्ञापनासूत्र भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यस्थितिकानां पुद्गलानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यस्थितिकः पुद्गलो जघन्यस्थितिकस्य पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया षट्स्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतु:स्थानपतितः, स्थित्या तुल्यः, वर्णादि-अष्टस्पर्शपर्यवैश्च षट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टस्थितिकोऽपि, अजघन्यानुत्कृष्टास्थितिकोऽपि एवञ्चैव, नवरं स्थित्यापि चतुःस्थानपतितः,
(जहण्णठिझ्याणं भते पोग्गलाणे पुच्छा ?) हे भगवन ! जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों की पृच्छा ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते एवं बुच्चइ-जहपणठिइयाणं पोग्गलाणं अर्णता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन ! किस काहण ऐसा कहाजाता है कि जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! जहण्णठिइए पोग्गले जहण्णठिइयस्स पोग्गलस्स व्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्य स्थिति वाला पुद्गल जघन्य स्थिति वाले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य होता है (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित होता है (ओगाहणयाए चउट्टाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित होता है (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य होता है (वण्णाइ-अटफासपज्जवेहिय छट्ठाणवडिए) वर्ण आदि से तथा आठ स्पर्श के पर्यायों से षटूस्थानपतित होता है (एवं उक्कोसठिइए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाला भी (अजहण्णमणुक्कोसठिइए वि एवं चेव) मध्यम स्थिति वाला भी इसी प्रकार (नवरं ठिईए वि चउहाणवडिए) विशेष यह कि स्थिति की
(जहण्णठिइयाणं भंते ! पोग्गलाणं पुच्छा ?) मावन् ! धन्य स्थिति वा पुगबानी छ ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! मनन्त पर्याय ॥ छ (से केगडेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्णठिइयाणं पोग्गलाण अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) 3 मावन् ! ।। ४.२ मे उपाय छ है धन्य स्थिति पुगताना मनन्त पर्याय छ ? (गोयमा ! जहण्णठिइए पाग्गले जहण्णठिइयस्स पोग्गलस्स दवद्वयाए तुल्ले) 3 गौतम ! धन्य स्थितिमा पुगत धन्य स्थितिमा पुगरथी द्रव्यनी अपेक्षा तुक्ष्य थाय छ (पएसद्वाए छटाणपडिए) प्रशानी अपेक्षा षट्स्थान पतित थाय छ (ओगाहणढयाए चउडाण पडिए) म नाथी यतुःस्थान पतित थाय छ (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुल्य थाय छे (वण्णाइ-अटफास पज्जवेहिय छठ्ठाणाडिए) व माहिथी तथा मा8 २५शन पर्यायाथी पटस्थान पतित थाय छ (एवं उक्कोसठिइए वि) २.४ ४ारे पृष्ट स्थिति ५५ (अजण्णमणुक्कोसठिइए वि एवं चेव) मध्यम
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨