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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू०११ मनुष्यपर्यायनिरूपणम् ७४५ मैचतुर्भिर्ज्ञानैः षट्स्थानपतितः, केवलज्ञानपर्यवैस्तुल्यः, त्रिभिरज्ञानैः, त्रिभिर्दशनैः षट्स्थानपतितः केवलदर्शनपर्यवैस्तुल्यः, जघन्यगुणकालकानाम् भदन्त ! मनुष्याणां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यगुणकालकानां मनुष्याणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! जघन्यगुणकालको मनुष्यो जघन्यगुणकालकस्य मनुष्यस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतयातुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः, पतित (आइल्लेहिं चउहिं नाणेहिं छट्टाणवडिए) आदि के चार ज्ञानों से पदस्थानपतित (केवल नाणपज्जवेहिं तुल्ले) केवलज्ञान के पर्यायों से तुल्य (तिहिं अन्नाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिए) तीन अज्ञानों और तीन दर्शनों से षट्स्थानपतित (केवल दंसणपज्जवेहिं तुल्ले) केवलदर्शन के पर्यायों से तुल्य ( जहण्णगुणकालयाणं भंते ! मणुस्ताणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता) जघन्यगुण काले मनुष्यों के हे भगवन् ! कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणट्टेणं भंते ! एवं बच्चइ - जहण्णगुणकालयाणं मणुस्साणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे भगवन् ! किसकारण से ऐसा कहा गया कि जघन्यगुण काले मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (जहण्णगुणकालए मणूसे) जघन्यगुण कालामनुष्य (जहण्णगुणकालगस्स मणुस्सस्स ) जघन्यगुण काले मनुष्य से (दव्वट्टयाए तुल्ले) द्रव्य से तुल्य (एसइयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य (ओगाहणट्टयाए चउ(ओगाहणट्टयाए चाणवडिए) भवगाडनाथी थतुःस्थान पतित छे (आइल्लेहिं चउहिं नाणेहिं छट्टाणवडिए) महिना यार ज्ञानोथी पटस्थान पतित (केवलनाणपज्जवेहिं तुल्ले) ठेवणज्ञानना पर्यायाथी तुझ्य (तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिए) ऋणु अज्ञानी भने त्र हर्शनाथी षट्स्थान पतित (केवलदंसण. पज्जवेहिं तुल्ले) ठेवण दर्शनना पर्यायोथी तुझ्य ( जहण्णगुणकालयाणं भंते ! मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता १) ४धन्य गुशु अणा भनुष्योना हे भगवन् ! डेंटला पर्याय ह्या छे ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) डे गौतम ! अनन्त पर्याय उद्या छे ( से केणटुणं भंते! एवं वुच्चइ - जह गुणकालयाण मणुस्साणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे भगवन् ! शा र मेवु अहेतु छे ! धन्य गुणु अणा मनुष्योना अनन्त पर्याय ह्या छे ? (गोयमा !) डे गौतभ ! (जहण्णगुणकालए मणूसे) ४धन्य गुणु आणा भनुष्य (जहण्णगुणकालगस्स मणुसस्स ) ४धन्यशुशु आणा मनुष्यथी ( दव्वट्टयाए तुल्ले ) द्रव्यथी तुझ्य ५० ९४ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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