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प्रमेयवोधिनी टीका पद ५ सु. ११ मनुष्यपर्याय निरूपणम्
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दर्शने, अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकोऽपि एवञ्चैव, नवरम् अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, आदिमैश्चतुर्भिर्ज्ञानैः पदस्थानपतितः, केवलज्ञानपर्यवैस्तुल्यः, त्रिभिरज्ञानैः, त्रिभिर्दर्शनैः पदस्थानपतितः, केवलदर्शनपर्यस्तुल्यः, जघन्यस्थितिकानां भदन्त ! मनुष्याणां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यस्थितिकानां मनुष्याणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यस्थितिको हीणे) असंख्यात भाग हीन (अह अभहिए) अगर अधिक है (असंखेज्जइ भाग अन्भहिए) असंख्यात भाग अधिक है (दो नाणा) उसमें दो ज्ञान (दो अन्नाणा) दो अज्ञान (दो दंसणा ) दो दर्शन (अजह oraणुक्को सोगाहणए वि एवं चेव) मध्यम अवगाहना वाला भी इसी प्रकार (नवरं ओगाहणट्टयाए चउडाणवडिए) विशेष यह कि अवगाहना से चतुःस्थानपतित है (ठिईए चउडाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है ( आइल्लेहिं चउहिं नाणेहिं) आदि के चार ज्ञानों से ( छट्टाणवडिए) षट्स्थानपतित (केवलनाणपज्जवेहिं तुल्ले) केवल ज्ञान के पर्यायों से तुल्य (तिर्हि अण्णाणेहिं) तीन अज्ञानों से (तिहिं दंसणेहिं) तीन दर्शनों से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित है ( केवलदंसणपज्जवेहिं) केवलदर्शन के पर्यायों से (तुल्ले) तुल्य
( जहण्णठियाणं भंते । मणुस्साणं) भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों के (केवइया पज्जवा पण्णत्ता) कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे ( से केणणं भंते! एवं वुच्चइ - जहण्णठियाणं मणु
छे (असंखिज्जइ भाग अव्भहिए ) असं ध्यात लोग अधिछे (दो नाणा) तेभां ये ज्ञान (दो अन्नाणा) ये अज्ञान (दो दंसणा ) मे हर्शन (अजहण्णमणुकोसोगा• हणए एवं चेव) मध्यम अवगाहनवाजा पशु से प्रारे लगुवा (नवरं ओगाहणयाए चाणवडिए) विशेष भेडे अवगाहनावाणाथी यतुःस्थान पतित छे ( ठिईए चउट्ठाण डिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित छे (आइल्लेहिं चउहिं नाणेहि ) माहिना यार ज्ञानोथी (छठ्ठा णवडिए) षटस्थान पतित (केवल नाणपज्जवेहि तुल्ले) ठेवण ज्ञानना पर्यायोथी तुझ्य ( तिहिं अण्णाणेहिं) ऋणु अज्ञानाथी (तिहिं दंसणेहिं) ऋणु दर्शनाथी (लठ्ठाणवडिए ) षटस्थान पतित छे (केवलदंसणपज्जवेहि) ङेवण दर्शनना पर्यायाथी (तुल्ले) तुझ्य
( जहण्णठियाणं भंते! मणुस्साणं) हे भगवन् ! धन्य स्थितिवाणा मनुष्योना (केवइया पज्जवा पण्णत्ता) डेंटला पर्याय उद्या छे ? (गोयमा ! अनंत । पज्जबा पण्णत्ता) हे गौतम अनन्त पर्याय ह्या छे (से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ - जहण्ण
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨