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प्रज्ञापनासूत्रे वगाहनकानां मनुष्याणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यावगाहनको मनुष्यो जघन्यावगाहनकस्य मनुष्यस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थता तुल्या, अवगाहनार्थतया तुल्यः, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः त्रिभिनिः, द्वाभ्यामज्ञानाभ्यां, त्रिभिर्दर्शनैः षट्स्थानपतितः, उत्कृष्टावगाहनकोऽपि एवञ्चैव, नवरं स्थित्या स्याद्धीनः, स्यात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः असंख्येयभागहीनः, अथाभ्यधिकः असंख्येयभागाभ्यधिकः, द्वे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने, मणुस्साणं अणंता पजवा पण्णत्ता ?) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णोगाहणए मणूसे) जघन्य अवगाहना वाला मनुष्य (जहण्णोगाहणगस्स मणूसस्स व्वट्ठयाए तुल्ले) जघन्य अवगाहना वाले मनुष्य से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की दृष्टि से तुल्य हैं (ओगाहणदृयाए तुल्ले) अवगाहना की अपेक्षा से तुल्य है (ठिईए तिहाणवडिए) स्थिति से त्रिस्थानपतित है (वण्णगंधरसफासपजवेहिं) वर्ण गंध रस स्पर्श के पर्यायों से (तिहिं नाणेहिं) तीन ज्ञानों से (दोहिं अन्नाणेहिं) दो अज्ञानों से (तिहिं दसणेहिं) तीन दर्शनों से (छट्टाणवडिए) षट्स्थानपतित है (उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव) उत्कृष्ट अवगाहना वाला भी इसी प्रकार (नवरं) विशेष (ठिईए सिय हीणे) स्थिति से कदाचित् हीन (सिय तुल्ले) कदाचित् तुल्य (सिय अब्भहिए) कदाचित् अधिक होता है (जइ) यदि (हीणे) हीन है (असंखिजभाग કારણે એમ કહેવાય છે કે જઘન્ય અવગાહનાવાળા મનુષ્યના અનન્ત પર્યાય ४ा छ (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णोगाहणए मणूसे) धन्य माना पाणी मनुष्य (जहण्णोगाहणगस्स मणूसस्स दव्यद्वयाए तुल्ले) धन्य माना पापा भनुष्यथी द्रव्यनीष्टिये तुक्ष्य छ (पएसद्वयाए तुल्ले) प्रशानी टिथी तक्ष्य छ (ओगाहणयाए तुल्ले) मवानानी अपेक्षा तुझ्य छ (ठिईए तिद्राण वडिए) स्थितिथी त्रिस्थान पतित छ (वण्ण, गंध, रस फासपज्जवेहि) वर्ष, आध, २४ २५शन पर्यायाथी (तिहिं नाणेहिं) त्र ज्ञानाथी (दोहिं अन्नाणेहिं) में मशानायी (तिहिं दसणेहिं) शनायी (छट्ठाणवडिए) ५८स्थान पतित छ (उकोसोगाहणए वि एवं चेव) कृष्ट मानावा! ५५] से प्रारे (नवर) विशेष (ठिईए सियहीणे) स्थितिथी । पा२ डीन (सिय तुल्ले) । पा२ तुझ्य (सिय अब्भहिर) ४ायित् मथिथाय छे (जइ) यहि (हीणे) डान (असंखिज्जभागहीणे) असभ्यात माडीन. (अह अब्भहिए) १२ माघ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨