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________________ ७१४ प्रज्ञापनासूचे तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः स्थित्या तुल्यः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यथैः द्वाभ्यामज्ञानाभ्यां द्वाभ्यां दर्शनाभ्यां षट्स्थानपतितः उत्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चव, नवरं द्वे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने, द्वे दर्शने, अजधन्यानुत्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चव, नवरं स्थित्या चतुः स्थानपतितः, त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि, त्रीणि दर्शनानि, जघन्यगुणकालकानां भदन्त ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! (व्वट्टयाए तुल्ले) द्रव्य से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य हैं(ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित है (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य है (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायों से (दोहि अण्णाणेहिं) दो अज्ञानों से (दोहिं दंसणेहिं) दो दर्शनो से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित है ___ (उक्कोसठिइए वि एवं चेव) उत्कृष्टस्थितिवाला भी ऐसा ही है (णवरं दो णाणा दो अण्णाणा) विशेषता यह है कि दो ज्ञान और दो अज्ञान (दो दसणा) दो दर्शन भी कहना । ___(अजहण्णमणुक्कोसठिइए वि एवं चेव) मध्यम स्थिति वाला भी इसी प्रकार (नवरं) विशेष यह कि (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (तिणि णाणा) तीन ज्ञान (तिन्नि अण्णाणा) तीन अज्ञान (तिन्नि दंसणा) तीन दर्शन (जहण्णगुणकालगाणं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) जघन्यगुणकाले पंचेन्द्रिय तिर्यच के हे भगवन् ! कितने पर्याय हैं ? तुक्ष्य छ (पएसटूठयाए तुल्ले) प्रदेशथी तुक्ष्य छ (ओगाहणठ्याए चउट्ठाणवडिए) स नाथी यतुःस्थान पतित छे (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुक्ष्य छे. (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वणु, ध, २स २५ । पर्यायाथी (दोहिं अण्णाणेहिं) में अज्ञानाथी (दोहिं दसणेहिं) मे शनाथी (छट्ठाणवडिए) ५८स्थान पतित छ (उक्कोसठिईए वि एवं चेव) उत्कृष्ट स्थिति ५५५ मेवा०४ (णवर दो णाणा दो अण्णाणा) विशेषता के छ है ये शान में अज्ञान (दो दसणा) मे ४शन ५५५ ४ा छे. (अजहण्णमुणुक्कोस ठिईए वि एवं चेव) मध्यम थितिवाणा ५५ मे० प्रा२ (नवर) विशेष से छे ? (ठिईए चउढाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित छ (तिण्णि णाणा) त्र ज्ञानी (तिन्नि अण्णाणा) १] अशान (तिन्नि दसणा) प ४शन (जहण्णगुणकालगाणं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा) धन्य ४० गुणा ५२न्द्रिय तिय या भगवन् ! ३८६॥ ५र्याय छ ? (गोय मा શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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