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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.१० पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्यायाः अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः, स्थित्या चतुः स्थानपतितः, जघन्यस्थितिकानां भदन्त ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यस्थितिकानां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यस्थितिकः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जघन्यस्थितिकस्य पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकस्य द्रव्यार्यतया ७१३ ( जहा उक्कोसोगहणए तहा अजहण्णमणुक्को सो गाहणए वि) जैसा उत्कृष्ट अवगाहना वाला वैसा ही अजघन्य अनुत्कृष्ट अर्थात् मध्यम अवगाहना वाला भी (नवरं ओगाहणट्टयाए चउडाणवडिए) विशेष यह कि अवगाहना से चतुस्थानपतित है (टिईए चउडाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है. (जहण्णठियाणं भंते! पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! जघन्य स्थितिक पंचेन्द्रिय तिर्यचों के कितने पर्याय हैं ? (गोयमा ! अनंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय हैं ( से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ-जहण्णठियाणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थितिक पंचेन्द्रिय तिर्यच के अनन्त पर्याय हैं ? ( गोयमा) है गौतम ! ( जहण्णठिइए पंचिदियतिरिक्खजोणिए जहण्णटियस्स पंचिदियतिरिक्वजोणियस्स) जघन्य स्थितिक पंचेन्द्रिय तिर्यच जघन्यस्थितिक दूसरे तिर्यच पंचेन्द्रिय से ( जहा उक्कोसोगाहणए तहा अजहण्णामणुक्कोसोगाहणए वि) ने उत्ष्ट અવગાહનાવાળા તેમજ જઘન્ય અનુત્કૃષ્ટ અર્થાત્ મધ્યમ અવગાહનાવાળા પણ (नवर ओगाहणट्ट्याए चउडाणवडिए) विशेष से छेडे अवगाहनाथी यतुःस्थान पतित छे. (ठिइए चउट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित छे. ( जहण्णठियाणं भंते! पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? ) डे लगवन् ! नवन्य स्थितिष्ठ यथेन्द्रिय तिर्यथाना डेंटला पर्याय छे ? ( गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनंत पर्याय छे (से के टूटैणं भंते ! एवं वुच्चइ - जहण्णठिइयाण पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?) डे ભગવન્ ! શા કારણે એમ કહેવાય છે કે જઘન્ય સ્થિતિક પ ંચેન્દ્રિય તિય ́ચના अनन्त पर्याय छे ? (गोयमा) हे गौतम! ( जहण्ण ठिईए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए जहण्णठिईम्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियम्स ) ४धन्य स्थिति यथेन्द्रिय तिर्यथ धन्य स्थिति मील तिर्यथ पथेन्द्रियथी (दब्बटूठयाए तुल्ले) द्रव्यथी प्र० ९० શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર :૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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