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________________ ६७४ प्रज्ञापनासूत्रे अपि, अजधन्यानुत्कृष्टमत्यज्ञानी अपि एवञ्चैव, नवरं स्वस्थाने षट् स्थानपतितः एवं श्रुताज्ञानी अपि, अचक्षुर्दर्शनी अपि, एवञ्चैव यावत् वनस्पतिकायिकाः ॥८॥ टीका-अथ जघन्याद्यवगाहनकानां पृथिवीकायिकानां पर्यवान् प्ररूपयितु माह-'जहण्णोगाहणाणं भंते ! पुढविकाइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जघन्यावगाहनकानाम्- जघन्यम् अवगाहनं शरीरो. छूयो येषां ते जघन्यावगाहनकास्तेपामित्यर्थः, पृथिवीकायिकानां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? भगवान् आह-'गोयमा !" हे गौतम ! 'अणंता पज्जवा पण्णत्ता' जघन्यावगाहनकानां पृथिवीकायिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, गौतमः पृच्छति'से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जहण्णोगाहणाणं पुढ विकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! तत्-अथ, केनार्थेन-कथं तावत् , एवम्-उक्तरीत्या, उच्यते वि) ऐसा ही उत्कृष्ट मति-अज्ञानी भी (अजहण्णमणुक्कोसमइ. अन्नाणी वि एवं चेव) मध्यम मति-अज्ञानी भी ऐसा ही (नवरं) विशेष यह कि (सहाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं (एवं सुयअण्णाणी वि) ऐसा ही अताज्ञानी भी (अचक्खुदंसणीवि एवं चेव) अचक्षुदर्शनी भी ऐसा ही (जाव इणप्फइकाइया) वनस्पतिकायिकों तक इसी प्रकार कहना चाहिए । टीकार्थ-अब जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिको के पर्यायों की प्ररूपणा की जाती है गौतम-जघन्य अवगाहना वाले पृथ्वीकायिकों के कितने पर्याय - भगवन्-हे गौतम ? अनन्त पर्याय कहे हैं। मन भयक्षुश नना पर्यायाथी ५८स्थान पतित छे (एवं उक्कोसमइअण्णाणी वि) मे शत उत्कृष्ट भति अज्ञानी ५५५ (अजहण्णमणुक्कोस मइअन्नाणी वि एवं चेव) मध्यम माति-मज्ञानी ५५ वी शते (नवरं) विशेष मे छ है (सटूठाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थानमा पट्थान पतित छ (एवं सुयअण्णाणी वि) सभा श्रुताज्ञानी ५ (अचखुदसणी वि एव चेव) अयक्षुहर्शनी ५५ सभा समपा (जाव वणप्फइकाइया) वनस्पतिय सुधी 200 ५४ारे ४ नये. ટીકાથ-હવે જઘન્ય અવગાહનાવાળા પૃથ્વીકાયિકના પર્યાની પ્રરૂપણ કરાય છે શ્રીગૌતમસ્વામી–હે ભગવન જઘન્ય અવગાહનાવાળા પૃથ્વીકાચિકેના કેટલા પર્યાય કહ્યા છે? શ્રી ભગવાન–હે ગૌતમ અનન્ત પર્યાય કહ્યા છે, શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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