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प्रबोधिनी टीका पद ५ सू.८ पृथ्वीकायिकादीनां पर्यायनिरूपणम्
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यिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्यमत्यज्ञानीनां पृथिवीकायिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यमत्यज्ञानी पृथिवीकायिको जघन्यमत्यज्ञानिनः पृथिवीकायिकस्य द्रव्यार्थ - तया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थ तथा चतुःस्थानपतितः स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः पट् स्थानपतितः, मत्यज्ञानपर्यवस्तुल्यः, श्रताज्ञानपर्यवैः, अवक्षुर्दर्शनपर्यवैः षट् स्थानपतितः, एवम् उत्कृष्टमत्यज्ञानी पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणणं भंते एवं बुच्चइ - जहण्णमइ अण्णाणीणं पुढविकाइयाणं अनंता पज्जवा पणता ?) हे भगवन् ! किसकारण ऐसा कहा गया कि जघन्य मतिअज्ञानी पृथ्वीकायिकों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! जहण्णमइअण्णाणी पुढविकाइए जहणमइ अन्नाणिस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! जघन्य मति - अज्ञानी पृथ्वीकायिक जघन्य मति अज्ञानी पृथ्वीकायिक से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है ( पएसध्याए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है (ओगाहणट्टयाए चउद्वाणवडिए) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है (ठिईए तिट्ठाणवडिए) स्थिति से त्रिस्थानपतित है (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं छाणवडिए) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, के पर्यायों से षट्स्थानपतित है (मइअण्णाणवजवेहिं तुल्ले) मति- अज्ञान के पर्यायों से तुल्य है (सुयअण्णा
पज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए) श्रुताज्ञान और अचक्षुदर्शन के पर्यायों से षट्स्थानपतित है ( एवं उक्कोसम अण्णाणी
अज्ञानी पृथ्वीअयिना विषयभां पृथ्छा ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता ) हे गौतम! अनन्त पर्याय ह्या छे (से केणणं भंते ! एवं वुच्चई जहण्णमइअण्णणी पुढविकाइयाणं अनंता पज्ञ्जवा पणणता ?) हे भगवन् ! शा अर सेभ કહેલું છે કે જઘન્ય મતિ અજ્ઞાની પૃથ્વીકાયિકાના અનન્ત પર્યાય કહ્યા છે ? (गोयमा ! जहण्णमइ अण्णाणी पुढविकाइए जहण्णमइ अन्नाणिस्स पुढविकाइयस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम! धन्य भति अज्ञानी पृथ्वी अयि धन्य भति अज्ञानी पृथ्वीअयि थी द्रव्यनी अपेक्षा तुझ्य छे ( पसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशोनी अपेक्षाये तुल्य छे (ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहनानी अपेक्षा यतुःस्थान पतित छे (ठिइए तिट्ठाणवडिए) स्थितिथी त्रिस्थान पतित छे (वण्ण गंधरसफासपज्जवेहिं छट्टाणवडिए) वर्षा, गंध, रस स्पर्शना पर्यायोथी षट्स्थान पतित छे (मइ अण्णा णपज्जवेहिं तुल्ले) भति, अज्ञानना पर्यायाथी तुझ्यछे ( सुयअण्णाणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए) श्रुताज्ञान
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨