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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.५ द्वीन्द्रियादीनां पर्यायनिरूपणम् ६०५ त्यज्ञानश्रुतज्ञानाचक्षुर्दर्शनपर्यवैश्च षट्स्थानपतितः, एवं त्रीन्द्रिया अपि, एवं चतुरिन्द्रिया अपि, नवरं द्वे दर्शने, चक्षुर्दर्शनम्, अचक्षुर्दर्शनम्, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्यवा यथा नैरयिकाणां तथा भणितव्याः, मनुष्याणां भदन्त ! कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त! एवमुच्यते-मनुष्याणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः? गौतम ! मनुष्यो मनुष्यस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, गंध रस फास-आभिणिबोहियनाण-सुयणाण-मइअण्णाण-सुयअपणाण-अचक्खुदंसण पज्जवेहिं य) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, मत्यज्ञान, श्रुत-अज्ञान, अचक्षुदर्शन पर्यायों से (छट्ठाणवडिए) षटूस्थानपतित होता है। ___ (एवं तेइंदिया वि) इसी प्रकार त्रीन्द्रिय (एवं चरिंदिया वि) इसी प्रकार चौइन्द्रिय भी (नवरं) विशेष यह है कि (दो दसणा-चक्खुदंसणं अचक्खुदंसणं) दो दर्शन-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन । (पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जवा) पंचेन्द्रिय तिर्यचों के पर्याय (जहा नेरइयाणं) नारकों के समान (तहा भाणियवा) वैसे ही कहने चाहिये। (मणुस्साणं भंते ! केवड्या पज्जवा पण्णत्ता) हे भगवन् ! मनुष्यों के कितने पर्याय कहे है ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं चुच्चइ मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) किस अपेक्षा से हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा !) हे फास आभिणिवोहियणाण सुयणाण मइअण्णाण सुयअण्णाण अचक्खुदसण पज्ज वेहिय) व २४ २५०', मिनिमशान, श्रुतज्ञान मत्यज्ञान श्रुताज्ञान, भन्यक्षुशन पर्यायोथी (छदाण वडिए) पदस्थान पतित थाय छ (एवं तेइंदियाबि) से प्रारे श्रीन्द्रिय ५५ (एवं चरिंदिया वि) मे शते यतुरिन्द्रिय ५५ (नबरं) विशेषता मे (दो दसणा चक्खुदसणं अचक्खुदसणं) દશન બે–ચક્ષુદર્શન અને અચક્ષુદર્શન (पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाण पज्जवा) ५'येन्द्रिय तिय याना पर्याय (जहा णेरइयाण) नारीना समान (तहा भाणियव्वा) तेवा वा नये (मणुस्साण भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता) भगवन् ! मनुष्याना टमा पर्याय ४ा छ ? (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णता) गौतम ! मनन्त पर्याय ४ा छ (से वेणट्टेण भंते ! एवं वुच्चइ मणुस्साण अणंता पज्जवा पण्णत्ता) ४४ अपेक्षाये भगवन् ! म ४२वाय छ । मनुष्याना मनन्त पर्याय ४॥ छ ? (गोयमा 1) શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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