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________________ ६०४ प्रज्ञापनासूत्रे द्वीन्द्रियस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया स्यादीनः, स्यात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः, असंख्येभागहीनो वा, संख्येयभागहीनो वा, संख्येयगुणहीनो वा, असंख्येयगुणहीनो वा अथाभ्यधिकः असंख्येयमागाभ्यधिको वा, संख्येयभागाभ्यधिको वा संख्येयगुणाभ्यधिकोवा, असंख्येयगुणाभ्यधिकोवा, स्थित्या त्रिस्थानपतितः, वर्णगन्धरसस्पर्शाभिनिबोधिकज्ञानश्रुतज्ञानमहै कि द्वीन्द्रियों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! बेइंदिए बेइंदियस्स दव्वट्टयाए तुल्ले) हे गौतम ! द्वीन्द्रिय द्वीन्द्रिय से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य है (ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे, सिय तुल्ले सिय अन्भहिए) अवगाहना से स्यात् हीन, स्यात् तुल्य, स्यात् अधिक होता है (जइ हीणे) यदि हीन है तो (असंखेज्जइभाग हीणे वा) असंख्यात भाग हीन होता है (संखेज्जइ. भाग हीणे वा) या संख्यातभाग हीन होता है (संखेज्जइगुण हीणे वा) या संख्यातगुण हीन होता है (असंखेज्जइगुणहीणे वा) अथवा असंख्यातगुण हीन होता है (अह अभिहिए) अगर अधिक हो तो असंखेनइभाग अन्भहिए वा) असंख्यातभाग अधिक होता है (संखेजइभाग अन्भहिए वा) संख्यातभाग अधिक होता है (संखिज्जइगुणमन्भहिए वा) संख्यातगुण अधिक होता है (असंखिज्जइगुणमन्भहिए वा अथवा असंख्यातगुण अधिक होता है। (ठिईए तिट्ठाणवडिए) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है (वण्णसम उपाय छे दीन्द्रियान मनन्त पर्याय छ ? (गोयमा ! बेइंदिए बेइंदियस्स दव्ययाए तुल्ले) गौतम! दीन्द्रिय दीन्द्रयथा द्र०यनी हटिये तुक्ष्य छ (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रशथी तुक्ष्य छ (ओगाहणद्वयाए, सिय हीणे सिय तुल्ले सिय. अब्भहिए) अपमानाथी स्यात् डीन, स्यात् तुझ्य, स्यात् २५मिने छ (जइ हीणे) नहीन छ त(असंखेज्जइभागहीणेवा) असण्यात सापडान थाय छ (संखेज्जइ भागहीणे वा) सध्या महीन ने छ (संखेज्जइ गुणहीणे वा) म॥२ सयातशुष्ण लीन थाय छे (असंखेज्जइ गुणहीणे वा) 424॥ मसण्यात गुडीन थाय छ (अह अब्भहिए) २२ मधिथाय छे (असंखेजइ भाग अब्भहिए वा) मसण्यात मागम४ि थाय छ( संखिजइ भाग अव्भहिए वा) सेण्यातना सधि: थाय छ (संखिज्जइ गुण अब्भहिए वा) सण्यातशुष्ण मधि४ मने छ (असंखिज्जइ गुणमन्भहिए वा) अथवा अन्यात गु] अधि४ मन छ (ठिइए तिढाणवडिए) स्थितिनी अपेक्षा विस्थान पतित छ (वण्ण गंधरस શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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