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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.५ द्वीन्द्रियादीनां पर्यायनिरूपणम् ६०३ असंखिज्जइभाग अब्भहिए बा संखिज्जइभाग अब्भहिए वा संखिज्जगुणमब्भहिए वा असंखिज्जगुणमब्भहिए वा ठिईए तिट्राणवडिए वण्णगंधरसफास आभिणिबोहिवनाण सुयनाण मइअण्णाण सुय अण्णाण अचक्खुदंसण पज्जवेहि य छटाणबडिए एवं तेइंदियावि एवं चउरिदिया वि नवरं दो दसणा चक्खुदंसणं अचखुदसणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जवा जहा नेरइयाणं तहा भाणियव्वा मणुस्साणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ मणुस्साणं अगंता पज्जवा पण्णता ? गोयमा ! मणूसे मणूसस्स दवट्टयाए तुल्ले पएसट्टयाए तुल्ले ओगाहणट्रयाए चउट्राणवडिए वाणगंधरसफासआभिणिबोहियनाण सुयनाण ओहिनाण मणपजवनाण पज्जवेहिं छट्राणवडिए केवलनाणपज्जबेहिं तुल्ले तिहिं दंसणेहिं छट्टाणवडिए, केवल दंसणपज्जवेहिं तुल्ले, वाणमंतरा ओगाहणट्टयाए ठिईए चउट्टाणवडिया, वण्णाइहिं छट्ठाणवडिया जोइसिया वेमाणिया वि, एवं चेव नवरं ठिईए तिटाणवडिया । सू०५॥ छाया-द्वीन्द्रियाणां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-द्वीन्द्रियाणाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः? गौतम ! द्वीन्द्रियो द्वीन्द्रियादि पर्याय वक्तव्यताशब्दार्थ-(वेइंदियाणं पुच्छा) द्वीन्द्रियों के विषय में प्रश्न-उनके पर्याय कितने हैं ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-बेइंदियाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता કીન્દ્રિયાદિ પર્યાય વક્તવ્યતા हाथ-(बेइंदियाणं पुच्छा ) जीन्द्रियाना विषयमा प्रश्न तमना पर्याय मा छ ? (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! मनन्त पर्याय ॥ छ ? (से केणगुण भंते ! एवं वुच्चइ वेइंदियाणं अणंता पञ्जवा पण्णता ?) 3 लन् ! ॥ ४२९ શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨
SR No.006347
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1177
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size68 MB
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