________________
४८६
प्रज्ञापनासूत्रे जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटी, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटी अन्तर्मुहूर्तोना, संमूच्छिम उरःपरिसर्पस्थलचरपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन सेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त की, (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की पुच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अतोमुहुत्त, उक्कोसेण तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है ।
(उरपरिसप्प थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति कितनी ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं पुवकोडी) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट पूर्वकोटि की (अपज्जत्तयाणं पृच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमु. हुत्त) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उकोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की।
(संमुच्छिम उरपरिसप्पथलयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) संमूर्छिम उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति पर्याानी छ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उकोसेणं तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तणाई) “धन्य मन्तभुत, कृष्ट मन्तभुतઓછા ત્રણ પાપમની
(उरपरिसप्प थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा) ७२५२सप स्थल१२ पयन्द्रिय तिय यानी स्थिति सी छ ? (गोयमा !) . गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण पुव्वकोडी) धन्य मन्तभुइतनी अट पूत टिनी (अपज्जत्तयाण पुच्छा ?) २५५र्यालोनी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहणणं वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं) 3 गौतम ! ४धन्य मने इष्ट मन्तभडतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) ५यातनी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तणा) गौतम ! धन्य सन्तभुत, અને ઉત્કૃષ્ટ અન્તમુહૂર્ત એછા પૂર્વ કેન્ટિની
(समुच्छिम उरपरिसप्प थलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) सभू लभ २५रिस स्थलान्य२ ५'थेन्द्रिय तिय यानी स्थिति हैटी ? (गोयमा !
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨