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प्रमैयबोधिनी टीका पद ४ सू.०५ पञ्चन्द्रियतियग्योनिकानां स्थितिनि० ४८५ अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन चतुरशीतिवर्षसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पदस्थलचर पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जयन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम् , पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उरःपरिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! वाससहस्साई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा) अपर्याप्तकों को स्थिति की पृच्छा ? (गो. यमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य
और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की (पजत्तयाणं पुच्छा) पर्याप्तकों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणें अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउरासी वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष में अन्तर्मुहूर्त कम को।
(गन्भवतिय चउप्पय थलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) गर्भज चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति की पृच्छा अर्थात् उनकी स्थिति कितनी है ? (गोयमा)हे गौतम ! (जहपणेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) जघन्य अन्तर्मु. हूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम की (अपज्जत्तयाणे पुच्छा ?) अपर्याप्तको की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोमन्तभुत नी, पृष्ट योरासी १२ वषनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त लोनी स्थिति छ। ? (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेणं वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्त) ४३न्य मन कृष्ट मन्तभुतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्त होनी स्थिति सधी प्रश्न छ ? (गोयमा ) गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउरासी वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तणाई) ४३न्य मन्तइत, इट यारासी હજાર વર્ષમાં અન્તર્મુહૂર્તની એ છાની
(गम्भवतिय चउप्पयथलयरपंचिं दियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा) tar ચતુપદ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યની સ્થિતિની પૃચ્છા ? અર્થાત્ તેમની स्थिति सी छ ? (गोयमा !) ॐ गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइ) धन्य २५-तभुत, कृष्ट र ५८।५मनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा) २५५मिनी स्थितिनी २७। (गोयमा !) गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) धन्य मने अष्ट मन्तभुतानी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૨